कविता

वृद्ध- भविष्य का दर्पण

आज के युग में वृद्धों की कैसी हो गयी हालत
अपने हाथों से आँसू पोंछने की बन गयी आदत

हमारी तरह ये भी कभी थे वृक्ष छायादार
छाया देते-देते खुद पतझड़ हो गये ये बहार

तैयार हो गये थे ये हमारे लिये खुद बिकने पर
आज मजबूर हो गये यायावरी जीवन जिने पर

जो था इनके पास इसने सबकुछ कर दिया अर्पण
याद रखना इन्हे भूलनेवाले ये हैं भविष्य का दर्पण

सभ्यता के संचालक और ये हैं समाज की शान
कमजोर भले हैं हड्डियाँ पर देते हैं सच्चा ज्ञान

तिनका सहारा बनके इनकी ऩईया कर दें पार
इनके आँसू को हम अपनी आँखों में लें उतार

आओ इन्हें सम्मान देकर अपना भविष्य बनायें
इनकी बची जीवन में खुशियों का दीप जलायें
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस की शुभकामनाएँ !
भगवान इनका जीवन खुशियों से भर दे !

-दीपिका

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “वृद्ध- भविष्य का दर्पण

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर लेखन

Comments are closed.