वृद्ध- भविष्य का दर्पण
आज के युग में वृद्धों की कैसी हो गयी हालत
अपने हाथों से आँसू पोंछने की बन गयी आदत
हमारी तरह ये भी कभी थे वृक्ष छायादार
छाया देते-देते खुद पतझड़ हो गये ये बहार
तैयार हो गये थे ये हमारे लिये खुद बिकने पर
आज मजबूर हो गये यायावरी जीवन जिने पर
जो था इनके पास इसने सबकुछ कर दिया अर्पण
याद रखना इन्हे भूलनेवाले ये हैं भविष्य का दर्पण
सभ्यता के संचालक और ये हैं समाज की शान
कमजोर भले हैं हड्डियाँ पर देते हैं सच्चा ज्ञान
तिनका सहारा बनके इनकी ऩईया कर दें पार
इनके आँसू को हम अपनी आँखों में लें उतार
आओ इन्हें सम्मान देकर अपना भविष्य बनायें
इनकी बची जीवन में खुशियों का दीप जलायें
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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस की शुभकामनाएँ !
भगवान इनका जीवन खुशियों से भर दे !
-दीपिका
सुंदर लेखन