कविता

ओ बुरी नजर वाले

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ओ बुरी नजर वाले
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हम हिंद के जवाँ हैं अपने हिंद के रखवाले।
सचेत हो जाओ जरा ओ बुरी नजर वाले।।

हम सब अखंड बने हैं मिटाकर हर क्लेश को,
हमने तन-मन समर्पित कर दिया है देश को,
तमस मिटाने के लिए हम लाये हैं उजाले।
सचेत हो जाओ जरा ओ बुरी नजर वाले।।

पत्थर से भी टकरायेंगे फौलादी है ये सीना,
इरादे के हैं पक्के परंतु दिल है अपना विणा,
कहते हैं उससे आगे करते चाहे तो आजमाले।
सचेत हो जाओ जरा ओ बुरी नजर वाले।।

चारो ओर से प्रकृति करता इसकी रखवाली,
इसके इतिहास की भी हर बात है निराली,
वंदे मातरम् की धुन पंछी भी यहाँ निकाले।
सचेत हो जाओ जरा ओ बुरी नजर वाले।।

सिकंदर भी हारा यहाँ अंग्रेज भी मात खाया है,
कट गया है सर हमारा पर कभी झुक न पाया
है,
हार हमें मंजूर नहीं हम तो हैं जितनेवाले।
सचेत हो जाओ जरा ओ बुरी नजर वाले।।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।