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प्रेरक व आदर्श जीवन के धनी हमारे आरम्भिक दिनों के मित्र श्री सत्यदेव सैनी

ओ३म्
 
श्री सत्यदेव सैनी यथा नाम तथा गुणों वाले व्यक्ति हैं। सम्प्रति आप उत्तर प्रदेश की आवास विकास परिषद, लखनऊ की सेवा से सेवानिवृत होकर लखनऊ में ही निवास कर रहे हैं। आपके दो पुत्र व दो पुत्रियां हैं। सभी विवाहित एवं ससन्तान हैं। आपका भरा पूरा परिवार आर्य विचारों का है। सन् 1975-1982 के बीच जब हम देहरादून में आपके निवास स्थान जाते थे तो आपके बच्चों के कार्यों के बारे में सुनते थे। बच्चों में वैदिक संस्कार इस प्रकार से भरे गये थे कि जब आपको खेलना होता था, तब भी सभी भाई बहिन मिलकर हवन किया करते थे। आप अपने विभाग में सच्चरित्रता की मिसाल कहे जा सकते हैं। देहरादून का कोई मित्र व विभागीय व्यक्ति जब लखनऊ निजी या सरकारी कार्य से जाता था तो आपके निवास पर ही गर्मजोशी से उसका आतिथ्य होता था। प्रातः उसे भ्रमण के लिये ले जाते थे और वहां से आकर शौच से निवृत होने पर परिवार के सभी लोग व अतिथिगण दैनिक यज्ञ में सम्मिलित होते थे। एक बार आपने यज्ञकुण्ड के आकार की दो बोरियां भरकर आम की यज्ञ समिधायें बनवा-कटवाकर हमें यज्ञ करने हेतु प्रदान की थी। इससे आपके यज्ञप्रेम का अनुमान लगाया जा सकता है। आपका शरीर योग व योगाभ्यास से लचीला, फुर्तीला व प्रभावशाली बना हुआ था। आप सभी आसन भली भांति करते थे। जब वेद प्रचार समिति, देहरादून की ओर से आर्यसमाज धामावाला, देहरादून में एक वेद विद्या एवं योग प्रशिक्षण शिविर लगाया गया था, उस शिविर में स्वामी सोम्बुद्धानन्द योग आसान सिखाते थे और आसन प्रदर्शन के लिए श्री सत्यदेव जी ही आसन करके दिखाते थे। एक सप्ताह का वह शिविर बहुत ही सफलता के साथ सम्पन्न हुआ था। उसके बाद लगभग सन् 1980 में स्वामी सोम्बुद्धानन्द जी के ही निर्देशन में विश्व प्रसिद्ध भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में भी योग एवं वेद विद्या प्रशिक्षण शिविर लगाया गया था जो कि बहुत सफल रहा था। देहरादून में इससे कुछ समय पूर्व वेद प्रचार समिति का गठन किया गया था जिसके आप प्रधान थे और मैं भी उसमें सहयोग किया करता था। हमारे अन्य प्रमुख साथी श्री शिवनाथ आर्य और श्री धर्मपाल सिंह जी थे। यह दोनों साथी लगभग 15 वर्ष पहले दिवंगत होकर हमसे बिछुड़ गये हैं। वेद प्रचार समिति के अन्तर्गत हम प्रत्येक रविवार को पारिवारिक यज्ञ व वैदिक प्रवचन का आयोजन करते थे। न केवल पारिवारिक यज्ञ ही किये गये अपितु एक बार देहरादून के प्रमुख दून चिकित्सालय में वृहतयज्ञ सहित देहरादून के भारतीय जीवन बीमा निगम के नये भवन का गृह प्रवेश का यज्ञ भी समिति के द्वारा इसकी सक्रिय कार्यकत्री श्रीमति फूलवती शर्मा के प्रयासों से सम्पन्न हुआ था। श्री शिवनाथ आर्य तो देहरादून में अपने प्रकार के यूनिक व्यक्तित्व वाले एकमात्र आर्यसमाजी थे जिनमें महर्षि दयानन्द के प्रति जो गहरे भाव थे, ऐसे भाव वाला व्यक्ति देखा नहीं गया। श्री शिवनाथ आर्य एक दर्जी थे, रामामार्किट में श्रमिक दर्जी का कार्य करते थे। उनके पांच पुत्र व 2 पुत्रियां थी व हैं। परिवार आर्थिक दृष्टि से कमजोर था परन्तु प्रचार का कार्य सबसे अधिक श्री शिवनाथ आर्य ही करते थे। आप निर्भीक व साहसी आर्य प्रचारक थे और लोगों से आर्यसमाज के सिद्धान्तों पर भीड़ जाते थे। वह परिणाम की कभी चिन्ता नहीं करते थे। श्री शिवनाथ आर्य जी के बारे में हम कभी अलग से परिचय देंगे।
 
इतना और वर्णन कर दें कि श्री सत्यदेव सैनी जी की प्रेरणा व प्रयासों से श्री शिवनाथ आर्य जी को आवास विकास कालोनी में एक आवासीय भवन आबंटित हो गया था जहां वह अपने परिवार के साथ सुख व शान्ति के साथ रहते रहे। आज भी उनका परिवार उसी भवन में निवास में रहता है। श्री सैनी जी का देहरादून से लखनऊ स्थानान्तरण हो गया था। यहां आप लगभग 35 वर्षों से रह रहे हैं। यहां रहकर आपने आर्यसमाज की स्मरणीय सेवा की है। आप मंत्री व जिला सभा के प्रधान आदि प्रमुख पदों पर रहे और जमकर प्रचार किया। जोड़-तोड़ और गुटबाजी का रोग आपको छू भी न सका। लखनऊ के सभी प्रमुख आर्यसमाजी आपको जानते हैं। हमें नहीं पता कि आप जैसे कितने आर्यसमाजी लखनऊ में होंगे? आर्य जगत के विद्वान डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री व दीनानाथ शास्त्री जी के आपसे अन्तरंग सम्बन्ध हैं। जब स्वामी डा. सत्यप्रकाश जी का देहान्त हुआ तो कुछ दिन पूर्व अस्पताल से डिस्चार्ज होकर अमेठी जाते हुए आप सैनी परिवार से प्रेम व स्नेह के कारण कुछ समय उनके परिवार में आये थे। सैनीजी व उनके परिवार ने लखनऊ में चिकित्सा काल में स्वामीजी की प्रशंसनीय सेवा की थी। स्वामी जी की अन्त्येष्टि में भी श्री सत्यदेव सैनी लखनऊ से अपने सभी साथियों सहित सम्मिलित हुए थे।
 
वर्तमान में श्री सैनी जी को हम इमेल से अपने सभी लेख भेजते हैं जिसे न केवल सैनी जी पढ़ते हैं अपितु अन्यों को भी पढ़ाते हैं। एक और बात का उल्लेख कर इस संक्षिप्त लेख को समाप्त करते हैं। स्वामी सत्यपति जी के योग सम्बन्धी उपदेशों पर आधारित “बृहती ब्रह्म मेधा” नाम से तीन भागों में एक विशालकाय ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। अपने एक स्थानीय मित्र श्री ललित मोहन पाण्डेय की प्रेरणा से हमने इसे मंगा कर पढ़ा था। यह ग्रन्थ हमें इतना अच्छा लगा कि हमने स्वाध्यायशील सभी मित्रों को इसे पढ़ने की प्रेरणा की। श्री सत्यदेव जी इनमें से एक हैं। आपने इस ग्रन्थ को मंगाकर पूरा पढ़ा और इससे बहुत प्रभावित हुए और बहुत प्रशंसा की। योग व यज्ञ का श्री सैनी जी के जीवन में प्रमुख स्थान है। हमने सैनी जी को जितना जाना व समझा है, उसके आधार पर, सत्य व देवत्व, इन दोनों गुणों के हमें उनके जीवन में दर्शन होते हैं। उनके पुत्र श्री पंकज सैनी और श्री नीरज सैनी भी अपने पिता के अनुगामी हैं। श्री सत्यदेव सैनी जी व उनके परिवार के लिए हम परम पिता परमात्मा से मंगल कामना करते हैं।
 
-मनमोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “प्रेरक व आदर्श जीवन के धनी हमारे आरम्भिक दिनों के मित्र श्री सत्यदेव सैनी

  • मनमोहन भाई , सत्यदेव सैनी जी का विर्तांत अच्छा लगा और आप के संपर्क में आये अन्य लोगों को भी धियान से पड़ा ,बहुत अच्छा लगा .आप का सारा जीवन ही स्टडी से भरपूर है जो बहुत अच्छा है .मैं अपनी मैडीकल कंडीशन के कारण इतना पड़ नहीं सकता किओंकि ज़िआदा सत्रैस नहीं ले सकता लेकिन जो पड़ते हैं उन को देख देख कर खुश होता हूँ .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपके लिखे गए शब्द मेरे लिए बहुमूल्य एवं अनुपमेय हैं। मैं आपकी शारीरिक स्थिति से परिचित हूँ। आप कृपया स्ट्रैस बिलकुल भी न लें। आपकी शुभकामनायें एवं आशीर्वाद ही मेरे लिए सबकुछ हैं। आदर सहित धन्यवाद। विनीत : मनमोहन कुमार आर्य।

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