कविता

मन मेरे

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मन मेरे
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मन मेरे ओ चंचल पंछी
मुझे ऊपर ले चल
मुझे भी दुनिया देखनी है
जरा तू भी उड़ान भर
बाधाओं को देखकर
तुम होना न विह्वल
मुसिबतों बधाओं को
देना तू कूचल
उड़ने की चाहत न टूटे
ये दिल तो है पागल
हौसले की उड़ान में
गति देना तुम पल पल
हर काम मुमकिन कर देंगे
जब तू दे मुझको बल
तेरा साथ तो मन मेरे
हम जरुर होंगे सफल

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “मन मेरे

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर इच्छा

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