ग़ज़ल
शाद आँखों में हमेशा अश्क का चेहरा मिला
धूप की दीवार में भी दर्द का साया मिला
कौन है शामिल मुझी में हू-ब-हू मेरी तरह
सो गया मैं रात में तो शख़्स वो जगता मिला
चाँद बे-शक खूब लगता है मगर जब रात में
पानियों पर आ गया तो अक़्स पर धब्बा मिला
प्यास की जिद थी कि लेकर पास दरिया के चलो
पास दरिया के मगर प्यासा पड़ा सहरा मिला
दे रहे थे आप धोखा तो हुए नाराज क्यूं
जब किसी भी और से भी आपको धोखा मिला
है अभी जिन्दा हमारे गाँव में तहजीब सब
पर शहर में आपके बस झूठ का दावा मिला
— दिलीप विश्वकर्मा
अच्छी ग़ज़ल !
गजल में तुकांत जरूरी होता है क्या ?
हाँ अत्यन्त आवश्यक है, तभी तो गजल बनती है। इसे क़ाफ़िया कहते हैं।