आवाज रुक जाती है
अक्शर मेरे गुलाब लगाते ही आपके बालो़े में,
आपकी आँखे मुसर्रत से मुझे देख कर झुक जाती है,
ना जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ,
जो ज़बान खुश्क है और आवाज़ रुक जाती है.
लब काँपने लगते है ऐसे जैसे मौसम हो ठण्ड का,
जुबान फिसल रही है जैसे बनी हो रेत का,
कब तक चलेगा गा ये सिलसिला हमारी खामोस मोह्हबत का,
मैं ना सही तुम ही कर दो इज़हार हमारी बेपनाह मोह्हबत का.