जहां यज्ञ होता है, वहां गरीबी नहीं आती: उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ
ओ३म्
—वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में शरदुत्सव का तीसरा दिन–
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के पांच दिवसीय शरदुत्सव के आज तीसने दिन 9 अक्तूबर, 2015 के कार्यक्रम में बालते हुए आर्य विद्वान आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का यज्ञ के महत्व पर प्रवचन हुआ। उन्होंने कहा कि याज्ञवल्क्य ऋषि ने कहा है कि मनुष्यों को यज्ञ करने का अधिकार नहीं है क्योंकि मनुष्य की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि मनुष्य वह है जो असत्य का सहारा लेता है, झूठ बोलता है, ईर्ष्या व द्वेष पालता है तथा छल कपट आदि करता है। इसलिए याज्ञवल्क्य ऋषि ने कहा कि ऐसे हृदय वाला मनुष्य यज्ञ नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि यज्ञ कौन कर सकता है? यज्ञ वह मनुष्य कर सकता है कि जो ‘सत्यं वै देवाः’ हो अर्थात् जो मानव शरीर में देवता है। देवता वह मनुष्य होता है कि जिसके व्यवहार, वाणी और कर्म में सत्य होता है। इस मनुष्य शरीर में ही देव भी हैं, राक्षस और पिशाच भी हैं। कहा गया है कि जो देवता हैं, उनको यज्ञ करने का अधिकार है अर्थात् सत्य का व्यवहार करने वाले मनुष्य को ही यज्ञ करने का अधिकार है। यज्ञ तब प्रारम्भ होता है जब हम आपको देव अर्थात् देवता बनाने की प्रक्रिया से गुजारते हैं। आपके अन्तःकरण को पवित्र कर देते हैं। दिव्य भावनाओं से आपके अन्तःकरण को ओतप्रोत कर देते हैं। देव बन चुके उस व्यक्ति को याज्ञवल्क्य ऋषि यज्ञ करने का अधिकार देते हैं। याज्ञवल्क्य ऋषि एक बात और कहते हैं ‘यज्ञो वै विष्णुः’ अर्थात् यज्ञ ही विष्णु है। यज्ञ विष्णु इसलिये है कि विष्णु की तरह ही यज्ञ भी इस चराचर जगत में व्याप्त है। यह देव यज्ञ विष्णु की ही तरह तीनों लोकों, द्यु लोक, अन्तरिक्ष लोक और पृथिवी लोक, में व्याप्त है। यज्ञ में यज्ञ कुण्ड की सब से नीचे की मेखला जिसमें अग्न्याधान करते हैं, वह पृथिवी लोक का प्रतीक है। बीच की मेखला अन्तरिक्ष लोक होती है। तीसरी ऊपर की मेखला द्यु लोक होता है। जब अग्न्याधान किया जाता है, वह पृथिवी लोक अर्थात् नीचे वाली मेखला पर होता है। पृथिवी लोक में अग्नि प्रज्जवलित होती है। बीच की मेखला जो अन्तरिक्ष लोक है, उसकेा पार करती है, उसके ऊपर द्यु लोक है, उसे पार करती है। इसलिए कहा कि यज्ञ भी तीनों लोकों में व्याप्त है।
यज्ञ कुण्ड में डाली गई यह आपकी आहुति केवल पृथिवी लोक तक सीमित नहीं है, वायु के माध्यम से अन्तरिक्ष लोक में और सूर्य की रश्मियों के माध्यम से सूर्य लोक तक पहुंचती है। ऐसा तभी होता है यदि यदि यज्ञ में शुद्ध गाय का घृत प्रयोग किया जाता है। हमारे यज्ञ का आधार गाय है। हमारे यज्ञ का आधार वनस्पति जगत है जहां से वनस्पतियां प्राप्त होती हैं। हमारे यज्ञ का आधार समिधायें भी हैं। यज्ञ के ये जो आधार हैं, वह सब परम पिता परमात्मा के ही बनाये हुए हैं। यह निश्चित है कि यदि यज्ञ में गाय के शुद्ध घृत का प्रयोग किया है तो आपकी आहुति ‘द्यु लोक’ तक जायेगी। यजमान की यह आहुतियां यजमान के कर्मों के खाते में जमा होती रहती है। वैदिक विद्वान महात्मा आनन्द स्वामी लिखते हैं कि जब जीवात्मा शरीर छोड़ता है तब यज्ञ में उसके द्वारा डाली गई आहुतियां ‘‘धर्म” बन कर जीवात्मा का साथ देती हैं। इस कारण याज्ञवल्क्य यज्ञ को विष्णु कहते हैं। एक आख्यान के द्वारा सुन्दर रूप से समझाया गया है कि यज्ञ करने वालों का घर धन-धान्य से भरा होता है। यज्ञ से घर उत्तम सन्तान व सन्तानों से भरा रहता है। जिस परिवार में यज्ञ होता है उस परिवार में कलह नहीं होती। वहां एक दूसरे का सम्मान करने वाले लोग होते हैं। परिवार में संगतिकरण होता है। एक आख्यान आता है कि यज्ञ करने वाले का घर धन धान्य से कैसे व क्यों भरा रहता है? एक बार ऋषियों की सभा हो रही थी। गरीबी एक महिला का रूप धारण करके उस सभा में चली गई। गरीबी ने ऋषियों से कहा कि आप लोगों ने तमाम संसार के कल्याण के लिए व्यवस्थायें एवं सूत्र दिए हैं। आपने हमारे लिए, गरीबी के लिए, तो कुछ नहीं किया। सारा संसार गरीबी को मिटा देना चाहता है। सब यह कहते हैं कि ‘अमीरी लाओ, गरीबी मिटाओं।’ हमें तो सब मिटा देना चाहते हैं। तब एक ऋषि खड़े हुए। उन्होंने गरीबी को कहा कि तुम हमारे साथ आश्रम में रहना। हम तो ब्रह्म के उपासक हैं। तुम यहां हमारे आश्रम में रहो, तुम्हें कोई नहीं मिटा सकता। ऋषियों की सभा समाप्त हुई। वह गरीबी उन ऋषि के पीछे-पीछे चली। जब आश्रम आया तो ऋषि तो अन्दर चले गये। गरीबी आश्रम के द्वार पर खड़ी रही। ऋषि ने पीछे मुड़ कर देखा और पूछा कि तुम बाहर क्यों रूक गई? गरीबी बोली कि मैं आपके आश्रम में भी नहीं रह सकती। इसलिये कि आपके आश्रम में प्रातः व सायं काल यज्ञ होता है।
आप लोगों ने ही कहा है कि ‘यज्ञो वै विष्णुः’ अर्थात् यज्ञ विष्णु है। यज्ञ के साथ तो लक्षमी रहती है। गरीबी यज्ञ=विष्णु के साथ नहीं रह सकती। आख्यान का अर्थ यह निकला कि जिस परिवार में यज्ञ रूपी विष्णु की स्थापना हो जाती है वह परिवार धन धान्य से भरा रहता है। गरीबी उसके दरवाजे पर खड़ी रहती है। गरीबी यज्ञ करने वाले के घर में प्रवेश नहीं करती। आप अन्दाज कीजिये कि यज्ञ का कितना महत्व है? यह बात देखी गई है कि जिस परिवार में यज्ञ चलता रहता है तथा प्रतिदिन 16 आहुतियां प्रातः व सायं काल पड़ती रहती है, उस परिवार में गरीबी नहीं आती है। गरीबी दरवाजे पर खड़ी रहती है। उसका कभी वंश नहीं मिटता है। उसके यहां उत्तम सन्तान का जन्म होता है। चोरों के मकान मिट गये, जुआरी मिट जाते हैं, शराबी मिट जाते हैं, बुरे काम करने वाले मिट जाते है, उनकी सम्पत्तियां बिक जाती हैं, लेकिन जिस परिवार में यज्ञ चलता रहता है, उस परिवार पर इस तरह के संकट नहीं आते कि उसका मकान तबि जाये। उसे रोटी भी खाने को न हो। इसलिए ऋषियों ने पांच यज्ञों की व्यवस्था की थी कि गृहस्थी इनको करता हुआ सफलता को प्राप्त करे। तभी तो गृहस्थ जीवन की सफलता है जब गृहस्थ जीवन में धन-धान्य हो, उत्तम सन्तान हो, कलह न हो, पति-पत्नी प्रेम से रह रहे हों, पिता पुत्र प्रेम से रह रहे हों, एक दूसरे का आदर सत्कार कर रहे हों, परिवार में अनुशासन हो। यही गृहस्थ जीवन का सुख है। इसलिये ऋषियों ने यज्ञ को विष्णु कहा।
लेकिन यह मनुष्य ऋषियों की बात को समझ नहीं पाया। इसने क्या किया, यह बाजार में गया, बाजार से एक सौ एक रूपये के विष्णु खरीद लाया, यह समझ ही नहीं सका, ऋषि याज्ञवल्क्य की बात को। उन्होंने तो यज्ञ रूपी विष्णु की स्थापना करने के लिए कहा था। प्रतिदिन अपने परिवार में यज्ञ करो और उसमें 16 आहुतियां प्रातः और सायं दो और वायु को शुद्ध करो। लेकिन मनुष्य तो विचित्र है। यह बाजार में गया और बने बनाये विष्णु ले आया, उन्हें एक आले में मन्दिर सा बना कर रख दिया। वहां एक बिजली का बल्ब लगा दिया जो 24 घंटे जलता रहता है। दीपक जलाने से भी इसने छुट्टी कर ली। आजकल तो सभी काम आटोमैटिक है। देखो, जब इस एक सौ एक रूपये में विष्णु की स्थापना हो गई और यज्ञ रूपी विष्णु को बाहर कर दिया तो भारत में बेहद गरीबी आ गई। भारत में ऐसी गरीबी आई कि जिसका वर्णन जब पढ़ते हैं तबि आश्चर्य होता है। ऋषि दयानन्द के जीवन की घटना आती है कि एक महिला कम आयु के अपने मृतक पुत्र को गंगा में बहाने गई तो उसके पास कफन तक का कपड़ा नहीं था। उसने अपनी धोती का आधा वस्त्र फाड़ करके मृतक बच्चे को उसमें लपेट के गंगा में बहा दिया और उस उस कपड़े को भी उसके शरीर से उतार लिया कि इसे सीकर पहन लूंगी। ऐसी गरीबी इस देश में आई। उस दिन ऋषि दयानन्द बहुत रोये। इसलिए आप ऋषियों की बातों को समझो। ऋषियों की बात को मानकर ही हमारा कल्याण होगा। ऋषियों की बातों से ही हमारे अन्दर समृद्धि आयेगी। हमारा राष्ट्र ऊंचा उठेगा। हमारे परिवार अच्छे बनेंगे। आज बच्चों में संस्कार क्यों नहीं है? आज माता-पिता यह क्यों कह रहे हैं कि हमारा बच्चा हमारी बात नहीं मान रहा। इसलिए क्योंकि आपने उन्हें संस्कार दिये ही नहीं और जब संस्कार नहीं दिये तो आपका बच्चा आपका आज्ञाकारी कैसे बनता? विद्वान वक्ता श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी निर्धारित समय पूरा हो जाने के कारण उन्होंने अपने वक्तव्य कोयहीं पर विराम दिया।
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून आज योग एवं ध्यान साधना शिविर प्रातः 5:00 बजे से आरम्भ हुआ जिसके निर्देशक स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती थे। प्रातः 6:30 बजे से अथर्ववेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ जिसके मुख्य यजमान आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री तथा यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती थे। अथर्व वेद के मन्त्रों का पाठ गुरूकुल के दो ब्रह्मचारियों श्री शिवकुमार एवं श्री विनीत ने किया। मुख्य यज्ञशाला सहित अन्य तीन वृहद यज्ञकुण्डों में भी यज्ञ सम्पन्न हुआ और अनेक यजमानों एवं धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं ने यज्ञ में घृत व साकल्य की श्रद्धा व भक्ति के साथ आहुतियां दी। यज्ञ की समाप्ती पर आर्य भजनोपदेशक पंडित आजाद लहरी आर्य, सहारनपुर का एक भजन हुआ जिसके शब्द थे ‘करो हवन से प्यार अमृत बरसेगा, बरसेगा बरसेगा बरसेगा भाई बरसेगा।’
आश्रम में आज श्रीमति सरोज अग्निहोत्री की अध्यक्षता में प्रातः 10 बजे से 1 बजे अपरान्ह तक एक महिला सम्मेलन हुआ। सम्मेलन का संचालन विदुषी बहिन श्रीमति सुरेन्द्र अरोड़ा ने योग्यतापूर्वक किया। आरम्भ में ओ३म् संकीर्तन हुआ। तपोवन विद्या निकेतन की छात्राओं ने ‘झूम उठा आलम सारा, वेदों की झंकार लिये जब आया योगी प्यारा’ भजन गाया जिसे सभी श्रोताओं ने सराहा। श्रीमति वर्मा ने एक भजन गाया जिसके शब्द थे ‘अगर ऋषि की बातों पर जमाना चल दिया होता, ये आंधी नहीं आती ये तूफा टल गया होता।‘ महिला सम्मेलन को श्रीमति सरोज आर्या, द्रोणस्थली कन्या गुरूकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा, श्रीमति सुरेन्द्र आरोड़ा आदि विदुषी बहनों ने सम्बोधित किया। मधुर गायिक श्रीमति मीनाक्षी जी व आर्यजगत के प्रसिद्ध गीतकार एवं गायक पं. सत्यपाल पथिक सहित द्रोणस्थली कन्या गुरूकुल की छात्राओं के भजन भी महिला सम्मेलन में हुए। स्वामी दिव्यानन्द जी के आशीर्वचनों से सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
तपोवन आश्रम के उत्सव में देश के अनेक भागों से बड़ी संख्या में धर्म व यज्ञ प्रेमी लोग पधारे हुए हैं। सभी अतिथियों के भोजन व आवास की व्यवस्था आश्रम की ओर से की गई हैं। वैदिक साहित्य के विक्रेता भी आश्रम में साहित्य प्रदान कर रहे हैं। आश्रम के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री तथा मंत्री इं प्रेमप्रकाश शर्मा ने सभी आगन्तुकों का धन्यवाद किया। आज का कार्यक्रम पूर्ण सफल रहा।
–मनमोहन कुमार आर्य