कविता

नारी

धरा की सबसे बड़ी सौगात है नारी
ये मैं नहीं कहती सभी कहते हैं
लहलहाती हुई जिंदगी का राज है नारी
रोज घायल होती है रोज सम्भलती है
क्योंकि काली का विशाल रूप है नारी
सबका मान सम्मान करती हैं वो क्योंकि
लक्ष्मी दुर्गा की अवतार है नारी
मत पूछो उसकी खुशियाँ मुझसे
दूसरों की खुशियों में ही खुश होती है नारी
दु:खों को सह लेती है चुपचाप वो
किसी को भनक न लगने देती है नारी
क्या क्या मैं बताऊँ कि क्या है वो
सभी को पता है कि साक्षात देवी है नारी !

— निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

One thought on “नारी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सत्य कथन

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