लघुकथा : अभिमन्यु को कैसे फांसा जाये ?
अध्यापक अभिमन्यु के अंतिम वाक्य समाप्त होते ही सभागार में तालियाँ गूंज उठी | उस दिन से वे अध्यापक; छात्र प्रिय बन गये | दिन प्रति दिन उनकी लोकप्रियता बढती गई | कई अध्यापकों ने उनकी दिल से प्रशंसा की, तो कुछ ने दिमाग से प्रशंसा की ..| उस दिन से दिमाग से प्रशंसा करने वाले अध्यापकों के भीतर इर्षा-द्वेष की अग्नि प्रज्वलित हो गई थी | उस अग्नि ने उनके दिन का चयन और रातों की निद्रा को खंडित कर दिया था | इसका परिणाम उस अध्यापक को भुगतना ही था |
एक रात्रि अग्नि से खंडित निद्रा वाले अध्यापको ने मुर्गियों की टांग चबाते और दूसरे हाथ से शरीर और मस्तिष्क में उत्तेजना प्रदान करनेवाले आधुनिक सोमरस का पान करते हुए …..अत्याधुनिक एवं पारम्परिक मिश्र चक्रव्यूह के सन्दर्भ में ‘’अभिमन्यु को कैसे फांसा जाये ?’’ इस विषय पर गम्भीर संगोष्ठी सम्पन्न की | संगोष्ठी उपसंहार में अध्यापक, खंडित अध्यापकों के प्रिय छात्र, संगठना एवं बाहर से कुछ गुंडों को सम्मिलित करना तय किया गया | बदले में छात्रों को परीक्षा में अंक, संगठना एवं गुंडों को रूपये और रात्रि संगोष्ठी में सहभागिता प्रदान करने का निर्णय लिया गया |
एक खंडित अध्यापक ने दूसरे खंडित अध्यापक को कहा,
“कल से अभिमन्यु को मनोरोगी बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी | पहला दाव उसे चिल्लर करना …और …|’’
— डॉ. सुनील जाधव, नांदेड
जलन जलाती है जन जान नहीं जाते क्यों