लघुकथा

लघुकथा : करवा चौथ व्रत

सुगना आज फिर काम पर देरी से आई।उसका उतरा हुआ चेहरा व सूजी हुई आंखें सब कुछ बयान कर रही थी।सो उससे पूछे बिना ही मैंने चाय का कप उसकी ओर बढ़ा दिया।कप लेकर धीरे-धीरे चाय सुड़कने लगी। बीबी जी, ‘आप मेरे साथ पुलिस टेशन चली चलोगी?”

” क्यों क्या हुआ? ” मैनें हैरानी से पूछा।

“बीबी जी, क्या बताऊं, हर रोज दारू पीकर म्हारा घर वाला मुझे मारता- पीटता है, गन्दी -गन्दी गाली देता है। जो भी कमाती हूं वो भी छीन लेता है।वउसकी रपट लिखाऊंगी….।देखना बीबी जी …..” उसने अपनी कमर से कपड़ा उठाया तो लाल- नीले निशान देख कर मेरा मन खून खौल उठा। लेकिन वह चाय सुड़कती रही।उसकी आँखों में उदासी साफ दिखाई दे रही थी।

पूरे दिन अपनी धुन में काम में लगी रही बरतन माँजकर लगाए, कपड़े धोए, सारे घर की साफ- सफाई की।काम निपटा कर जाने लगी तो बोली, “बीबी जी, पगार में से कुछ पैसे मिल जाते तो ….?”……..मैं कुछ कहती इससे पहले वो ही बोल पड़ी, “बीबी जी, कल करवा चौथ का बरत है ना!”
मैं कुछ रुपये उसके हाथ में रखते हुए उसकी सूजी आंखें देखने लगी।

पैसे लेकर दुआ देती हुई वह तो चली गयी।पर …उसे खुश होकर जाते हुए देखकर मन ही मन बोली,’वाह री ….भारतीय नारी…’।

— डा. सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. [email protected]