ग़ज़ल
अनकहे अल्फाजों और झुकी पलकों में
छुपी हुई कहानी कुछ खास तो है
तकती हैं राहों को हर पल ये निगाहें
तुम्हारा इंतजार मिलन की आस तो है
गिला करो या शिकवा या फेर लो नजरें
इस बेरूखी में प्यार का एहसास तो है
तुम कर दो कतरा-कतरा इस दिल को
धड़कते हुए सीने में अंतिम साँस तो है
जुदाई गर बन गयी है नसीब अपना
गम नहीं यादों का समंदर पास तो है
मिल जाएँ आती-जाती लहरों की तरह
क्षितिज पर मिलन का आभास तो है
चटके शीशों को जोड़ आईना कर देना
हुनर यह आम नहीं कुछ खास तो है
– रोचिका शर्मा, चेन्नई