गीत : मधुर यामिनी में
शरद चांदनी की मधुर यामिनी में।
तुम्हारी प्रतीक्षा एक सदी सी लगी ।
नींद बोझिल हुई पल पल।
जगाती रही एक प्यास हर पल।
सो गया जहाँ ये रात सो गयी ।
पथ ताकती मेरी निगाह खो गयी ।
सन्नाटों में खोया रहा ये शहर ।
आंसुओं में एक नदी डूबती सी लगी ।
मंदिरों के दिए धुवां देने लगे ।
अर्चना के स्वर मन्द पड़ने लगे ।
प्यासे झरने दर्द बन गिरते रहे ।
सूनी शिलाओं में दर्द का गीत भरते रहे ।
तरसते रहे फिर अधर रात भर ।
सांसों में एक घुटन समाती सी लगी ।
यादों के जंगल फिर गहराने लगे ।
उदासियों के पनघट बुलाने लगे ।
बांसुरी के सुर कुछ सुना ना सके ।
घायल अधर गीत कोई गा ना सके ।
बेचैनियत से भरा रहा ये सफर ।
ज़िंदगी एक जाल में कसमसाती सी लगी ।
— प्रकाश पाण्डेय