कविता

रोता होगा भगत

रोता होगा भगत देश का हाल देखकर
नेताओं की नित बदलती चाल देखकर

नि:संदेह ये तुम्हारे सपनों का देश नहीं
अन्यथा बदल जाता यूं ही परिवेश नहीं
अपने ही देश में उग्रवादी कहते हैं तुम्हें
रहा अब कुछ भी इस उपरांत शेष नहीं
बुना गद्दारों का ये मकड़जाल देखकर
रोता होगा भगत…

कोई राष्ट्र-पिता तो कोई चाचा बना है
देश को बाप की जागीर समझ तना है
इतिहास तक में नहीं मिला स्थान उसे
हो गया भारतवर्ष के लिये जो फ़ना है
बदला इतिहास लोगों ने माल देखकर
रोता होगा भगत…

मंदबुद्धि भी चाहे प्रधानमंत्री बन जाऊं
वंशवाद की राजनीति को आगे बढ़ाऊं
वोटों के लिये बिक जाते हैं ईमान यहाँ
सिंहासन पर विराजते अक्सर खड़ाऊं
बदलती निष्ठाएं हवा की चाल देखकर
रोता होगा भगत…

जातीय कभी धार्मिक समीकरण बनाते
खुद को कमजोर का शुभचिंतक बताते
पहले जिन्हें ठोकर मार शान थी समझी
अब उनके द्वार जाकर दुम को हिलाते
स्थिति हुई जो इतनी विकराल देखकर
रोता होगा भगत…

सुधीर मलिक

भाषा अध्यापक, शिक्षा विभाग हरियाणा... निवास स्थान :- सोनीपत ( हरियाणा ) लेखन विधा - हायकु, मुक्तक, कविता, गीतिका, गज़ल, गीत आदि... समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे - शिक्षा सारथी, समाज कल्याण पत्रिका, युवा सुघोष, आगमन- एक खूबसूरत शुरूआत, ट्रू मीडिया,जय विजय इत्यादि में रचनायें प्रकाशित...