गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सलाम ए इश्क दे गयीं जुल्फें ।
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फें ।।

बड़ी सहमी हुई अदाओं में ।
तिश्नगी फिर बढ़ा गयीं जुल्फें ।।

खत्म थे हौसले जज्बातों के ।
कुछ उम्मीदें जगा गयीं जुल्फें ।।

उसे कमसिन न कहो तुम यारो ।
आज लहरा के वो गयी जुल्फें ।।

चाँद पर चार चाँद है लगता
गाल पे जब भी छा गयी जुल्फें ।।

जख्म इक उम्र से भरा ही नहीं ।
तीर दिल पर चला गयीं जुल्फें ।।

मेरी उल्फत की तू बनी शोला ।
घर मेरा फिर जला गयीं जुल्फें ।।

उम्र गुजरी है किन तजुर्बों से ।
आइना कुछ दिखा गयीं जुल्फें ।।

बहुत उलझी हुई बिखरी बिखरी ।
रात का सच बता गयीं जुल्फें ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]