ग़ज़ल
सलाम ए इश्क दे गयीं जुल्फें ।
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फें ।।
महफ़िलों में सवर गयीं जुल्फें ।।
बड़ी सहमी हुई अदाओं में ।
तिश्नगी फिर बढ़ा गयीं जुल्फें ।।…
खत्म थे हौसले जज्बातों के ।
कुछ उम्मीदें जगा गयीं जुल्फें ।।
उसे कमसिन न कहो तुम यारो ।
आज लहरा के वो गयी जुल्फें ।।
चाँद पर चार चाँद है लगता
गाल पे जब भी छा गयी जुल्फें ।।
जख्म इक उम्र से भरा ही नहीं ।
तीर दिल पर चला गयीं जुल्फें ।।
मेरी उल्फत की तू बनी शोला ।
घर मेरा फिर जला गयीं जुल्फें ।।
उम्र गुजरी है किन तजुर्बों से ।
आइना कुछ दिखा गयीं जुल्फें ।।
बहुत उलझी हुई बिखरी बिखरी ।
रात का सच बता गयीं जुल्फें ।।
– नवीन मणि त्रिपाठी