उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-39: अन्जान लेटर

समीर और रेनुका का प्यार दिन पे दिन बढ़ता गया वे हर जगह टाइम निकालकर मिलने लगे ये बात रेनुका के घर वालों को पता चल गयी उनको यह बात सुनकर बहुत बुरा लगा फिर अचानक रेनुका ने किन्हीं कारणों से अपनी नस काट ली तब रेनुका के पापा उसे देखने गये थे और उन्हें रेनुका और समीर के बारे सब पता चल गया था वे समीर के बहुत खिलाफ थे वे रेनुका को अपने साथ ले जाना चाहते थे पर कुछ दिनों बाद रेनुका के एग्जाम्स् थे इसलिए रेनुका के पापा रेनुका को साथ नहीं ले गये और अकेले वापस चले गये।

कुछ दिन बाद एग्जाम्स् शुरू हुये तथा एक दिन खत्म हो गये और देखते-देखते रिजल्ट भी आ गया जब समीर अपने रिजल्ट की काॅपी लेकर रेनुका के रूम पर पहुँचा तो वहां ताला लगा था और पूछने पर पता चला वह यहां से हमेशा के लिये चली गई उसके पापा आये थे उसे लेने ये सुनकर समीर बेदम सा बैठ गया और पागलों जैसी हरकते करने लगा ।

समीर के दोस्तों ने समीर को बहुत समझाया और उसके घर छोड़कर आये लगभग दो महीनों में समीर सब कुछ भूल चुका था ।

फिर एक दिन एक पोस्टमैन आया और समीर के घर की वेल बजायी तब समीर निकलकर आया फिर डाकिया ने पूछा समीर आप ही हो समीर ने हां कहा तब समीर को डाकिया ने एक लेटर दिया वह एक अंजान लेटर था उस पर भेजने वाले का नाम तथा पता कुछ नहीं था समीर ने लेटर खोला लेटर में लिखा था- “डियर समीर मैं रेनुका मेरे घर वालों ने मेरी शादी कहीं और तय कर दी है और मैं बहुत खुश हूँ. हो सके तो मुझे माफ कर देना और मुझे हमेशा के लिये भूल जाना”

यह पढ़कर एक बार फिर समीर टूट गया।

दयाल कुशवाह

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