धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विजयादशमी पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्श जीवन के अनुरूप स्वयं को बनाने का व्रत लें

ओ३म्

विजयादशमी पर्व से हमारे पूर्वजों व देशवासियों ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के आदर्श जीवन व उनके कृतित्व को जोड़ा है। यद्यपि आश्विन शुक्ला दशमी को मनाई जाने वाली विजयादशमी का श्री रामचन्द्र जी की लंकेश रावण पर विजय की तिथि से कोई ऐतिहासिक सम्बन्ध नहीं है, परन्तु भारत की वैदिक धर्म व संस्कृति के आदर्श होने के कारण और विजयादशमी का पर्व प्राचीन काल से क्षात्र धर्म से जुड़ा होने के कारण क्षात्र धर्म के मूर्त व आदर्श रूप मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को स्मरण करने का दिवस तो निश्चय ही है। यदि क्षात्र धर्म के पर्व पर श्री रामचन्द्र जी को स्मरण न किया जाये तो उनके समान अन्य कम ही हैं जिन्हें हम स्मरण कर सकते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा ले सकते हैं। हम समझते हैं कि आज के दिन हमें योगेश्वर श्री कृष्ण और उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को स्मरण कर उनके जीवन से भी प्रेरणा ग्रहण करने का व्रत लेना चाहिये। इससे न केवल हमारा जीवन लाभान्वित होगा वरन देश और समाज को भी लाभ होगा। यह नहीं भूलना चाहिये कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषियों के यज्ञों में विघ्न डालने वाले असुरों व राक्षसों का नाश किया था जिससे विश्व का कल्याण करने वाले यज्ञों की रक्षा हुई थी। इन्हीं यज्ञों को उन्नीसवीं सदी में वेदों के तलस्पर्शी विद्वान आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने पुनः प्रचलित किया है। विजयादशमी का दिन आज हमें श्री रामचन्द्र जी के जीवन से प्रेरणा लेने सहित यज्ञों की रक्षा करने व स्वयं यज्ञ एवं उनके आदर्शों को अपने जीवन में धारण करने की भी अपेक्षा करता हुआ प्रतीत होता है। श्री रामचन्द्र जी में जो ज्ञान, बल, आचरण था वह वेदों की शिक्षा, ऋषि-मुनियों की संगति व यज्ञों के कारण था। अतः हमें भी वेदाध्ययन कर अपने जीवन में ज्ञान व बल की वृद्धि करने के साथ उनका आचरण करना है और ईश्वरीय ग्रन्थ वेद और वेद ज्ञान के वाहक ऋषियों की आज्ञा के अनुसार प्रतिदिन पंचमहायज्ञों को धारण व आचरण में लाकर, इससे स्वयं उन्नत होकर संसार को भी उन्नत करना है।

 

श्री रामचन्द्र जी का जीवन इस लिए भी अनुकरणीय है कि उन्होंने देश व समाज से आसुरी व राक्षसी प्रवृत्तियों को दूर करने के साथ देश के ऋषि-मुनियों को सताने व उनके यज्ञीय कार्यों में बाधा डालने वाले राक्षसी स्वभाव के लंकापति राजा रावण को दण्डित किया था। सत्य की रक्षा के लिए दुष्टों को दण्डित करना आवश्यक होता है नहीं तो सत्य का व्यवहार समाप्त होकर देश व समाज में अनुशासन नहीं रहता और इससे धार्मिक व सदाचारी लोगों को दुःख व कष्ट होता है। हमारा देश श्री राम व श्री कृष्ण जी की सन्तानें है। इस कारण कि हमारे सबके पूर्वज राम व कृष्ण से जुड़े हुए हैं। यह इस कारण भी है कि प्राचीन काल में गुण, कर्म व स्वभावानुसार वर्ण परिवर्तन होता था। ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र बन जाते थे और क्षत्रिय व वैश्य गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार अनेक उन्नत व निम्न वर्णों को प्राप्त होते थे। अतः श्री राम व श्री कृष्ण सभी वर्णों के साझे पूर्वज हैं और हम उन्हीं की सन्ततियां हैं। अतः हमें उनको ही आदर्श मानकर उनका अनुकरण व अनुसरण करना है। यह भी हमारा कर्तव्य व धर्म है।

 

हम जानते हैं कि श्री राम व श्री कृष्ण यज्ञों के प्रेमी थे। यज्ञ परोपकार का सर्वश्रेष्ठ कार्य व उदाहरण हैं। इससे वायु शुद्ध होती है और पर्यावरण को लाभ होता है। वायु शुद्ध करने का यज्ञ के समान दूसरा उपाय संसार में वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। यज्ञ का मुख्य आधार गोघृत है। अतः गोपालन सहित व गोरक्षा भी यज्ञ से जुड़ी हुई है। इसलिये प्रत्येक वैदिक धर्मी राम व कृष्ण के अनुयायी को यज्ञ की रक्षा करने हेतु स्वयं इसको प्रतिदिन सम्पन्न करना चाहिये। महर्षि दयानन्द ने दीर्घ काल से बन्द यज्ञ की परम्परा को वैदिक काल के अनुसार प्रचलित कर इसे सरल व सर्वत्र सुलभ करा दिया है। सभी आर्य विचारधारा के लोग प्रतिदिन यज्ञ करते ही हैं। यज्ञकर्ता, गोपालक व गोरक्षक ही वस्तुतः श्री राम व श्री कृष्ण के अनुयायी कहलाने के अधिकारी हैं।  इस पर सभी सनातन धर्मी भाईयों को विचार करना चाहिये और ओ३म् नाम तथा वेद के विचारों, मान्यताओं व सिद्धान्तों के अन्तर्गत संगठित होकर वेदों, सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना चाहिये। यह ध्यान में रखना चाहिये कि संसार में केवल वेद और वैदिक धर्म ही ऐसी जीवन शैली हैं जो विश्व से अशान्ति, अधर्म तथा पाप को मिटा कर शान्ति, धर्म व शुभ कर्मों को स्थापित कर सकती हैं।

 

संसार में बहुत से महापुरूष व वैज्ञानिक आदि हुए हैं। हम जब भी किसी महापुरूष या वैज्ञानिक की जयन्ती मनाते हैं तो हम क्या करते हैं? उनके जीवन, विचारों, गुणों व कार्यों को स्मरण कर उनमें संशोधन, सवंर्धन व प्रचार की प्रेरणा प्राप्त कर उसके प्रसार का ही तो व्रत लेते हैं। अतः विजयादशमी पर्व पर भी हमें ऐसा ही करना है। हमें श्री राम चन्द्र जी व श्री कृष्ण जी के जीवन पर विचार करना है और उनके जीवन, कार्यों व आदर्शों को जानकर उनकी प्राप्ति को अपने जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य बनाना है। ऐसा करके हम कुछ-कुछ उनके जैसे बन सकते हैं। केवल उनके नाम का कीर्तन करने से कोई लाभ किसी को नहीं होता। विजया दशमी का पर्व मनाते हुए सर्वोत्तम विधि यही है कि हम अपने घरों में वृहत्त यज्ञ-अग्निहोत्रों का आयोजन करें जिससे परिवार व समाज का वातावरण शुद्ध व पवित्र हो और इससे सभी को स्वास्थ्य व मन की प्रसन्नता का लाभ हो। इसके साथ श्री राम, श्री कृष्ण, चाणक्य, महर्षि दयानन्द, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, सरदार पटेल, पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा, वीर सावरकर, मदन लाल ढ़ीगरा, शहीद ऊधम सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव आदि का स्मरण कर उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये।

 

इन संक्षिप्त शब्दों के साथ हम सभी बन्धुओं को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई देते हैं।

मनमोहन कुमार आर्य

 

2 thoughts on “विजयादशमी पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्श जीवन के अनुरूप स्वयं को बनाने का व्रत लें

  • मनमोहन जी, लेख अच्छा लगा . भारत के हिन्दू सिख इसाई बोधि जैनी और यहाँ कि मुस्लिम भी राम चन्द्र जी और कृष्ण जी को ही मानते थे . उन के दिन मनाने में तभी लाभ हो सकता है जब हम उन की शिकषाओं पर चलें .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं लेख पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपकी टिप्पणी सत्य, उचित एवं माननीय है।

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