गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भले कट रही बेसबब जिंदगी है

लबो पर हमारे मुकम्मल हँसी है ।

हमारी वफ़ा का सिला ये मिला है
जिसे चाहते थे, हमारा नहीं है ।

वफ़ा गर नहीं है खुलेआम कह दो
भरम तोड़ देने की आदत भली है ।

सताओ मुझे पर जरा सोच लेना
वफादार हूँ बस यही बेकसी है ।

कभी देख लो हाल आकर हमारा
तुझे चाहता था, वहीँ आदमी है।

हवा रो रही देख जलते घरों को
बुझी राख शोला बनी फिर कहीं है ।

— धर्म पाण्डेय