जो रावण ने कभी कहा नहीं
हे राम मैं तो बस आपकी शरण में आना चाहता था..
उसके लिए मुझे जो राह ठीक लगी मैंने बिना सोचे चुन ली…
हे राम मेरा चरित्र तो इसलिए गढ़ा गया था ताकि समाज में लोग अच्छाई का महत्व समझ आपके जैसा चरित्र अपनाने की कोशिश करे; ताकि लोगो को मर्यादा पुरषोतम के गुणों का आभास हो और वो मेरी तरह कभी अमर्यादित कार्य करने के पहले दस बार इस दशानन के अंजाम के बारे में सोच कभी मुझ सा अनैतिक कार्य करने से भी घबराये
कि कही कोई राम आ उसका भी वही हाल न कर दे जो मेरा हुआ था।
पर आज के समाज के पापियो को देखने से तो लगता है कि असुर हो कर भी मैं शायद इतना क्रूर न था जितने ये है।
मैंने भले ही सीता हरण का महा पाप अपने सर लिया पर कभी उन्हें स्पर्श करने की कोशिश भी नहीं की अपितु मैंने तो सदा उन्हें ऐसे रखा जैसे एक बालक अपनी माता को रखता है
पर आज के पापी जिन्हें मैं रावण कहना अपना अपमान समझता हूँ वो तो अपनी माता को भी वो सम्मान नहीं दे पाते ।
मेरे भले दस सर थे पर मैं जो था सामने था कम से कम मैंने उन दस सरो में मुखोटे तो न लगा रखे थे।
पर आज तो हर एक चेहरे पर नकाब है तो कैसे पहचान हो की किसमे आपका और किसमे मेरा अंश है विद्यमान ?
हे राम हर दसहरे को जलाया जाता हूँ मैं ;
पर क्या सच में मैं मिटाया गया हूँ समाज से?
या और तेजी से बढ़ रहा हूँ हर जगह ,हर तरफ, हर घर ,में हर चेहरे के पीछे;
हे राम कृपा कर के बताये, कब मुक्त होऊंगा मैं इस जहाँ से; और क्या तब भी आप आएंगे मेरा अंत करने?
हे राम जिस सीख के लिए ये सब हुआ ;क्या सच में कोई सिख सका है उसे?
माना की मैंने बहुत से पाप किये है मेरे राम ;और तभी तो आपकी घृणा मिली मुझे ।
पर तब मुझे लगा था की मेरी मृत्यु व्यर्थ नहीं जायेगी ;और समाज को ये सीखा जाऊंगा की अब और रावण न होने पाये; पर आज लग रहा है की शायद मैं गलत था ।
लोगो ने मुझे अपने में ऐसा बसा लिया है ,की अब मैं सोचता हूँ की आखिर यहा और कितने रावण पैदा होने बाकि है; और कब आओगे आप जो अंत होगा इन सब का।
प्रिया मिश्रा
प्रिया जी , लेख अच्छा लगा .मैं तो बार बार यही कहता हूँ कि उस रावण को अब भूल जाना चाहिए किओंकि उस ने तो अपनी बहन के पियार में बदला लिया था ,उस को अब मुआफ कर देना चाहिए लेकिन यह जो रावणों की भीड़ आज है उस पर किसी ज़हरीले पैस्तेसाइड के छिडकाव की जरुर है .