कविता
आसमान से तारे
तोड़ लाने की जिद
पाले हुए
सुनहरे भविष्य के गर्त में
बैठा हूँ मैं
कचरे के ढेर पर—
कभी न कभी
पूरे होंगे सपने मेरे
जो मैं देखता हूँ
इन खुली आंखो से
किताबें गर बदल न सके
हालात मेरे
ख्यालात बदलेंगे जरूर
और
मैं देख पाउंगा
दुनिया को अपनी ही नजरों से
धनी भले होंगे
गगनचुंबी इमारतों वाले
पर मेरे जैसा
विचारों का धनी
कोई न होगा मुन्नी—
— सीमा संगसार