कविता

कविता

आसमान से तारे
तोड़ लाने की जिद
पाले हुए
सुनहरे भविष्य के गर्त में
बैठा हूँ मैं
कचरे के ढेर पर—

कभी न कभी
पूरे होंगे सपने मेरे
जो मैं देखता हूँ
इन खुली आंखो से
किताबें गर बदल न सके
हालात मेरे
ख्यालात बदलेंगे जरूर
और
मैं देख पाउंगा
दुनिया को अपनी ही नजरों से
धनी भले होंगे
गगनचुंबी इमारतों वाले
पर मेरे जैसा
विचारों का धनी
कोई न होगा मुन्नी—

सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!