ग़ज़ल
सभी आप से दिल लगाने लगे हैं
मुहब्बत दिखा कर जलाने लगे हैं
बसाया तुझे दिल में मूरत बना कर
तभी भूलने में जमाने लगे हैं ।
जरा मुस्कुरा कर के देखा जो तुमने
मुहब्बत के सपने सजाने लगे हैं ।
चले जो गए थे मेरी मुफलिशी में
जरा वक्त बदला वो आने लगे हैं ।
भटकते अभी लोग इन्साफ खातिर
कचहरी कई और थाने लगे हैं ।
पलट वो गए है हमारी वफ़ा से
निगाहों को अपनी झुकाने लगे हैं ।
जवानी कटी “धर्म” रंगीनियों में
बुढ़ापे में गंगा नहाने लगे हैं ।
— धर्म पाण्डेय
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .