कविता

सीख

चींटी से सीखी हैं मैंने
निरन्तर बढ़ने की कला
गिर के संभलना
संभल कर फिर चढ़ना
धैर्य के साथ चलते रहना
और बार बार संभलने की कला
राह में अवरोध भले हो
चाहे हो डगर कांटों भरी
अपने लक्ष्य को पाने का
उसका दृढ़ संकल्प
चींटी से सीखी हैं मैंने
जीवन सफल बनाने की कला
एक जुट होकर चलना
अपनो को सहेजे रखना
मिलजुल सुदृढ़ समाज
बनाने की कला
चींटी से सीखी हैं मैने
कर्तव्यनिष्ठ होने की कला
अपने कर्म को सर्वोपरि जानकार
नित जुटे रहने की कला
चींटी से सीखी हैं मैने
आत्मविश्वास की कला
हो भार चाहे दस गुना
प्रयत्नरत रहने की कला
चींटी से सीखी हैं मैने
निरन्तर बढ़ने की कला

— मधुर परिहार