लघुकथा – बात बनी की नहीं
लघुकथा – बात बनी की नहीं
रघुवीर के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी, “ बात बनी की नहीं ?”
“ अम्माजी ! भैयाजी गए है. मामला टेढ़ा है. पहले उस लावारिस को पटाना फिर डॉक्टर को राजी करना, उस के बाद उस का ओपरेशन होगा. तब जा कर यह मामला फिट होगा. इस बीच किसी को मालूम भी न हो. यह जरुरी है. अन्यथा अस्पताल वाले और हम सब मुसीबत में फंस जाएँगे.”
“ और हाँ. तुम्हारे बाबूजी को पता न चले की एक लावारिस का. अन्यथा वे हार्टअटेक से ही मर जाएंगे.”
“ जी . इसी लिए तो. अन्यथा बाबूजी बिना बोले चले गए तो उन के द्वारा छुपा कर रखे गए लाखों रूपए भी चले जाएंगे.”
“ हाँ अम्मां, मैं अभी पता करता हूँ.” कहते हुए उस ने मोबाइल उठा लिया, “ भैया जी ! उस का गुर्दा निकलवा लिया क्या ? कुछ तो बता दीजिए की बात बनी है कि नहीं ? जी.” कहते ही रघुवीर का मुंह लटक गया.
“ अम्माजी अभी तक बात नहीं बनी है. जब बात बन जाएगी तो भैया फोन कर देंगे.” कहते हुए वह चिंतातुर अस्पताल में टहलने लगा.
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नए ज़माने की नई और दुखद लघु कथा .