ग़ज़ल
आप चादर ओढ़ कर क्यों फिर रहे अभिमान की
बोझ सी है जिंदगी कीमत नहीं है जान की
राह पर सच की चला जो दूर सबसे हो गया
महफ़िलों में भीड़ कितनी आज बेईमान की
आज लाखों ऐब दिखते हैं मेरे किरदार में
लाज तो रख लीजिये मेरे किये अहसान की
मौन होकर देखता है सच भरे बाजार में
बात क्यों सब मान लेते हैं भला शैतान की
आज अपने देश में ही नारियाँ डर के जिएँ
नोचती है गिद्ध नजरें हर तरफ हैवान की
‘धर्म’ तुम आकर जरा घूमो हमारे गाँव में
बन्दगी होती यहाँ है रात दिन महमान की
— धर्म पाण्डेय
सुंदर गजल