मुखौटा
हाँ तुमने मुझे देखा सदा मुस्कुराते
हर उस अवसर पर
जिसपे शायद खुश होना ही चाहिए
नहीं देख सके तुम वह पैबंद
जो लगाया था मैं ने
अपने चिथड़े हुए दिल पर
नहीं देखा तुमने मरहम
सीने के उन ज़ख़्मों पर
जो हुआ था छलनी
तुम्हारी बोली के तीरों से…..
देखी तुमने
मेरी खूबसूरती
उन हीरे, जवाहरातों में
जो दिए तुमने उपहार में
नहीं देखी मेरी सुंदरता जो
छिपी थी मेरी अल्हड़ खिलखिलाहट में…
देखी तुमने मेरी आज़ादी
जो दी थी तुमने
कि तुम स्वयं आज़ाद रहो
नहीं दिखाई दी
वह क़ैद
जिसने किया मजबूर
पहनने पर मुखौटा
मुस्कुराहट का
चलो मैं न सही
तुम तो हो खुश
कि मैं हूँ खुश
मुस्कुरा रही हूँ मैं…
— रोचिका शर्मा