मुक्तक
बसुधैव कुटूम्बकम का पहले पढ़ाते थे पाठ
आज अपने परिवार से ही बनती नहीं है बात
अपने स्वार्थ में हम इस कदर पागल गये हैं
आज दिल ने जिगर का छोड़ दिया है साथ
बसुधैव कुटूम्बकम का पहले पढ़ाते थे पाठ
आज अपने परिवार से ही बनती नहीं है बात
अपने स्वार्थ में हम इस कदर पागल गये हैं
आज दिल ने जिगर का छोड़ दिया है साथ
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मुक्तक में जो लिखा ,एक दम दरुसत .