ग़ज़ल
तेरी चाहतों का जहाँ और भी है
मगर प्यार मुझसा कहाँ और भी है
हमारी नजर ढूढ़ती बस तुम्ही को
चमन में भले तितलियाँ और भी हैं
सिखाया मुझे मेरी माँ ने ही चलना
जहाँ में भले उंगलियाँ और भी हैं
न भेजी कभी ये अलग बात साहिब
तुझे जो लिखी चिठ्ठियाँ और भी हैं
भले लौट आये हमारे जहाँ में
कई फासले दरमियाँ और भी हैं
जरा ‘धर्म’ तुम कोशिशें तेज कर दो
कदम दर कदम बेड़ियाँ और भी हैं
— धर्म पाण्डेय