“कुण्डलियाँ-छंद”
कुंडलियाँ छंद –
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1.
फूले सुधड़ गुलाब ये , काँटों के ही संग |
मुश्किल पर जब जीत हो , दुश्मन होते दंग ||
दुश्मन होते दंग , ………राह में डालें रोड़ा |
समय पाय फल होय, कर्म सद् करिये थोड़ा ||
प्रमुदित है मन आज , देख खुशियों के झूले |
हरी भरी है डाल , रंग हर खुश हैं फूले ||
2.
खारा पानी आँख का, बहा गया मन पीर |
कटुता सारी बह गई , टूटी ज्यों जंजीर ||
टूटी ज्यों जंजीर , और पनपा इक सपना |
जुडी दिलों की राह, बना फिर कोई अपना ||
मिलती ना यदि पीर, भेद ही रहता सारा |
रहते हम अनजान, और यह जीवन खारा ||छाया शुक्ला “छाया”