लघुकथा

~जुड़ाव ~

“जय हिन्द ‘सर’|”
“‘जय हिन्द’ आज गणपति विसर्जन और जुमे की नमाज़ दोनों ही है, और वो इलाका इतना सेंसटिव है फिर भी सड़क पर नमाज अता करने की क्यों इजाज़त दे दी गयी ?” एसएसपी साहब गुस्से में इंस्पेक्टर से बोले
“जी ‘सर’ वो भीड़ ज्यादा हो गयी थी अतः डीएम साहबsss !!” इंस्पेक्टर साहब की आवाज हलक से सही से निकल नहीं पा रही थी अधिकारी के गुस्से के सामने |

“जुलुस को ही थोड़ी देर रोक लेते, नमाज अता होने तक कम से कम | हल्की चिंगारी भी उठी तो आग की तरह फ़ैल जायेगी | फिर भी तुम सब ने सख्ती नहीं दिखाई | कुछ हुआ तो डीएम साहब तो जायेंगे ही साथ में हम सब को भी डूबा के जायेंगे |”
” चिंता की बात नहीं हैं ‘सर’ !”
“क्यों ? इतना यकीं कैसे हैं | जब तुन्हें मालूम हैं कि हर छोटी बात पर उस क्षेत्र में दंगा हो जाता हैं ??”
“सर, क्योंकि क्षेत्राधिकारी ‘मंजू खान सर’ नमाजियों के साथ और एसपी कबीर वर्मा साहब जुलुस के साथ हैं | और जुलुस और नमाजी में कोई नेता दिखाई नहीं पड़ा |” इंस्पेक्टर साहब बोले
“ओह, अच्छा! तब तो कोई चिंता की बात नहीं हैं | किसी नेता का वहां न होना ही तुम्हारें यकीं को पुख्ता करता हैं | फिर भी अलर्ट रहना !”एसएसपी साहब निश्चिन्त होकर बोले |

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|