कुंडलिया छन्द
1.) कुण्डलिया के छंद में
कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
अंत समय तक ही चले, यह प्यारी सौगात
यह प्यारी सौगात, छंद यह सबसे न्यारा
दोहा-रौला एक, मिलाकर बनता प्यारा
महावीर कविराय, लगे सुर पायलिया के
अंतरमन में तार, बजे जब कुण्डलिया के
(2.) जिसमें सुर-लय-ताल है
जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
सबसे सहज-सरल यही, छह चरणों का बंद
छह चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
रोल का फिर रूप, चार चरणों को धोता
महावीर कविराय, गेयता अति है इसमें
हो अंतिम वह शब्द, शुरू करते हैं जिसमें
— महावीर उत्तरांचली