गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हुई जो बारिश ज़रा सी शहरों में
लोगों के कच्चे मकान ढह गये

मिली जो शोहरत कुछ किरदारों को
कई दोस्तों के नकाब उतर गये

अपना होने का दम भरते थे जो कभी
बुरे वक्त में वो बनकर बगाने कह गये

हुआ साबित नहीं कोई सगा किसी का
जब चमन बहारों में वीराने रह गये

बधाइयाँ देने में भी लोग करने लगे कंजूसी
लगता है बधाई देने के रवाज़ पुराने रह गए।

— प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]