कविता

तन्हा

तनहा भटक रही हूँ
सुनसान राहों में
न पता सफ़र का
न मंजिल है
न कोई ठिकाना
न ख़बर है
अपनी राहों की
न बसने का
है कोई बहाना
तनहा सुनसान
रास्तो पर है
बस अकेले
चलते जाना
लबों पर दर्द ठहरा
न संग है राही कोई
न साथ है हमसफ़र
निगाहों में बस
अश्कों का पहरा ।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]