तन्हा
तनहा भटक रही हूँ
सुनसान राहों में
न पता सफ़र का
न मंजिल है
न कोई ठिकाना
न ख़बर है
अपनी राहों की
न बसने का
है कोई बहाना
तनहा सुनसान
रास्तो पर है
बस अकेले
चलते जाना
लबों पर दर्द ठहरा
न संग है राही कोई
न साथ है हमसफ़र
निगाहों में बस
अश्कों का पहरा ।