दो कुंडलियाँ
1.
हमने देखा आज फिर, अपना मौन टटोल।
एकाकीपन के वहाँ, मिले फटे कुछ ढोल॥
मिले फटे कुछ ढोल और पसरा वीराना,
निज छाया का मात्र उधर को आना-जाना।
तन में फिरता रक्त, लगा ठंढा हो जमने,
अधिक देर रुकना न ठीक तब समझा हमने॥
2.
बता पराया नित्य यों, दिल मत मेरा तोड़।
बन जाऊँ जिस दिन घुटन, देना क्षण में छोड़॥
देना क्षण में छोड़, न फिर वापस आऊँगा,
कभी न तेरा नाम, जगत में धुँधलाऊँगा।
अपना तुझको मान, स्वयं में सदा बसाया,
रख ले जरा लिहाज, न सीधे बता पराया॥