गाय और मनुष्य का मां-बेटे का रिश्ता
ओ३म्
‘गऊ माता विश्व की प्राणदाता’ पुस्तक पर आधारित लेख
मेहता जैमिनी आर्य समाज के शीर्षस्थ विद्वानों में से एक थे। आपने संसार के अनेक देशों में स्वयं के साधनों से वेद प्रचार किया। आप 83 ग्रन्थों के यशस्वी लेखक रहे हैं। आप छः भाषायें जानते थे और चार भाषाओं में आपने साहित्य रचना की। आप ऐसे प्रथम भारतीय विचारक थे जिसने धर्म प्रचारार्थ पूरे विश्व की यात्रा की थी। पं. गुरूदत्त विद्यार्थी जी के लाहौर में प्रवचन से प्रभावित होकर आप आर्य वा आर्यसमाजी बने थे। पं. लेखराम जी से भी आपके अन्तरंग सम्बन्ध थे। आपने उनके लिए कुछ अंग्रेजी पुस्तकों में से उपयोगी प्रमाणों का अनुवाद भी किया था। आपने लिखा है कि ‘‘पण्डित लेखराम जी ने मुझे वचन दिया था कि जब मैं बी.ए. उत्तीर्ण कर लूंगा तो हम दोनों ईरान, ईराक, बसरा व अरब चलकर प्रचार करेंगे। क्योंकि मेरा भी फारसी अरबी पर कुछ अधिकार था अतः वे मुझ से बहुत प्रेम करते थे।” नियति की ओर से यह अवसर नहीं आ सका। मेहता जैमिनी जी ने उर्दू में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है ‘‘गऊ माता विश्व की प्राणदाता”। हमने जब आर्यसमाज के तपस्वी व यशस्वी विद्वान पं. राजेन्द्र जिज्ञासु रचित मेहता जैमिनी जी की जीवनी पढ़ी, तो हमें मेहता जैमिनी जी के बारे में अनेक नये तथ्यों का ज्ञान हुआ। हमने उनको श्रद्धांजलि देने के लिए कुछ समय पूर्व एक लेख भी लिखा था। जब हमने मेहता जी की गाय पर उपर्युक्त पुस्तक का वर्णन पढ़ा तो हमारे मन में यह विचार आया कि इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद होकर प्रकाशन होना चाहिये। हमने अपना यह विचार व सुझाव ‘विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली’ के स्वामी श्री अजय आर्य जी से निवेदन किया। हमारी प्रार्थना स्वीकार कर उन्होंने प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी से पुस्तक का उर्दू से हिन्दी में अनुवाद व सम्पादन करने हेतु निवेदन किया जिसे जिज्ञासु जी ने स्वीकार कर लिया। यह ग्रन्थ अब प्रकाशित हो गया है। प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार 20 से 22 नवम्बर, 2015 तक अजमेर में परोपकारिणी सभा द्वारा आयोजित ऋषि मेले में इस महनीय पुस्तक का विमोचन हो रहा है। इस पुस्तक के प्रकाशन से हममें प्रसन्नता व आत्मतुष्टि का सात्विक भाव उत्पन्न हुआ है जिसके लिए हम यशस्वी महर्षि भक्त श्री अजय आर्य जी और आर्यजगत के तपस्वी व खोजी विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी के हृदय से आभारी हैं।
‘गऊ माता विश्व की प्राणदाता’ पुस्तक का जिज्ञासु जी द्वारा लिखा गया प्राक्कथन श्री अजय आर्य जी द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका वेद प्रकाश के नवम्बर, 2015 अंक में प्रकाशित किया गया है। इस प्राक्कथन में अनुवादक व सम्पादक श्री राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने गोमाता के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें लिखीं हैं जिन्हें प्रस्तुत करने का लोभ हम संवरण नहीं कर पा रहे हैं। इस प्राक्कथन में जिज्ञासु जी गऊ को माता माने जाने का कारण बताते हुए कहते हैं कि ‘वेद में गो को विश्व की माता कहा गया है। बकरी, भेड़, भैंस, ऊंटनी भी तो दूध देती हैं। दूध देने वाले पशुओं में केवल गाय ही एक ऐसा प्राणी हैं जो मानवीय माता के सदृश अपने बच्चे को नौ मास कोख में रखकर जन्म देता है। मानव के बच्चों का पालन करने के लिये गो-दुग्ध को विश्व के सब डाक्टर, वैद्य व वैज्ञानिक सबसे उत्तम, लाभदायक, गुणकारी व हितकारी मानते हैं।’
मनुष्य का भोजन मांस नहीं अपितु फल आदि हैं, इस सम्बन्ध में जिज्ञासु जी ने बाइबल की साक्षी प्रस्तुत की है। वह लिखते है कि ‘‘न जाने धर्म, धर्म ग्रन्थों व ईश्वर के नाम पर कब से और किसने पशु बलि व नर बलि की कुप्रथा चलाकर मनुष्यों में मांसाहार के प्रचार का घोर पाप किया है। आप बाइबल को ही उठाकर देखें तो हमें पहली बात यह पता चलती है कि परमात्मा ने मनुष्य को अदन के उद्यान में जन्म दिया था। “Now the Lord God had planted a garden in the east, in Eden and there he put the man he had formed.” अर्थात् प्रभु ने अदन के उद्यान की पूर्व दिशा में मनुष्य को उत्पन्न करके रखा। आगे लिखा है, “The Lord God made all kinds of trees grow out of the ground-trees that were pleasing to the eye and good for food.” अर्थात् परमात्मा ने सब प्रकार के पेड़ों को भूमि से उगाया। ये पेड़ आंखों के लिये आनन्ददायक तथा आहार के लिये अच्छे थे। उस समय वहां उस उद्यान में न तो मीट मार्कीट थी और न ही कोई बूचड़खाना था। अतः बाइबल के अनुसार भी आदि मानव विशुद्ध शाकाहारी था। उसका भोजन उद्यान की पवित्र उपज थी। बाइबल में आगे लिखा है, And the lord God commanded the man, “you are free to eat from any tree in the garden.” अर्थात् परमेश्वर ने मनुष्य को आज्ञा दी कि आप इस उद्यान के किसी भी पेड़ (के फल) से खाने में स्वतन्त्र हो। आगे पुनः ईश्वर ने मनुष्य को कहा, “and you will eat the plants of the field.” अर्थात् आप खेत में उपजे पौधों को खाओगे।’ जिज्ञासु जी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि यह आश्चर्य का विषय है कि बाइबल के इतने स्पष्ट आदेशों निर्देशों का उल्लंघन करके ईसाई जगत् कैसे मांसाहारी व मांस प्रचारक बन गया।
‘स्वाभाविक भोजन’ शीर्षक के अन्तर्गत जिज्ञासु जी ने मनुष्य के अहिंसक शाकाहारी प्राणी होने का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत किया है। वह लिखते हैं कि ‘मनुष्य को वैज्ञानिक युग में यह समझना होगा कि मानव का स्वभाविक भोजन शाकाहार है। डा. हरिश्चन्द्र जी ने विज्ञान के एक मौलिक विचार का प्रकाश करके भारी उपकार किया है। हिंसक जन्तुओं सिंह, चीते, बाघ आदि की गंध से गाय, बैल, हिरण, घोड़ा, बकरा, बकरी सब भाग खड़े होते हैं। चूहे को बिल्ली की गंध आ जाये तो वह लुक छिप जाता है। क्या कभी गाय, बकरी, घोड़े आदि को मनुष्य की गंध के आने से जान बचाकर भागते देखा है? पशु पक्षी सब इतना स्वाभाविक ज्ञान रखते हैं कि मनुष्य wild animal (हिंसक जन्तु) नहीं है।‘ इन पंक्तियों में जिज्ञासु जी ने बताया है कि गाय आदि पशुओं में हिंसक पशु सिंह आदि को दूर से सूंघ कर यह जानने की ईश्वर प्रदत्त देन व क्षमता है कि वह पशु हिंसक व मांसाहारी है या नहीं। इसी गुण के कारण गाय, बकरी व घोड़े आदि पशु सिंह आदि हिंसक पशु को देख कर, दूर से उसकी गन्ध को सूंघ कर, भाग जाते हैं परन्तु मनुष्य को देख कर यह भागते नहीं अपितु उसके समीप आते हैं। यह प्रमाण मनुष्य को शाकाहारी अंहिसक प्राणी सिद्ध करता है।
महर्षि दयानन्द का गाय माता के प्रति बहुत ही आदर व सम्मान का भाव था। गोहत्या को रोकने के लिए उन्होंने 2 करोड़ गो-प्रेमी देशवासियों के हस्ताक्षर कराकर इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरियां को भेजने का आन्दोलन चलाया था। गोहत्या पर मांसाहारियों को चेताते हुए और ईश्वर को गोमाता से दया, प्रीति व न्याय न करने का वह उलाहना देते हैं। वह अपनी प्रसिद्धतम पुस्तक गोकरूणानिधि में लिखते हैं कि ‘हे मांसाहारियों ! तुम लोग जब कुछ काल के पश्चात् पशु न मिलेंगे, तब मनुष्यों का मांस भी छोड़ोगे या नहीं? हे परमेश्वर तू क्यों इन पशुओं पर, जो कि बिना अपराध मारे जाते हैं, दया नहीं करता? क्या उन पर तेरी प्रीति नहीं है? क्या उनके लिए तेरी न्याय सभा बन्द हो गयी है? क्यों उनकी पीड़ा छुड़ाने पर ध्यान नहीं देता और उनकी पुकार नहीं सुनता।’ इन शब्दों में महर्षि दयानन्द जी की अपूर्व गोभक्ति के दर्शन होते हैं जो मानवीय गुणों अंहिसा, दया, करूणा व सहिष्णुता पर आधारित है।
वेदों ने गाय को संसार की माता कहा है जो कि वस्तुतः सत्य व यथार्थ है। अतः संसार के सभी मनुष्य उसके पुत्र व पुत्रियां है। माता की रक्षा करना प्रत्येक सन्तान का आध्यात्मिक, धार्मिक व नैतिक कर्तव्य है। अतः हम सबको परस्पर मिल कर गोमाता की रक्षा के लिए हर सम्भव प्रयास करना चाहिये। गाय बचेगी तो देश व मनुष्य बचेगा। यदि गाय नहीं रहेगी तो मनुष्य भी संसार में स्वतः नष्ट हो जायेगा।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन जी , लेख अच्छा लगा .
मनमोहन जी , लेख अच्छा लगा .
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी।