कविता
मैं ढूँढती हूँ
तेरी आँखों में
अपने को
मगर तुम्हारी
आँखों में समाहित है
गम का समुन्दर
मैं उसमें तैरती हूँ
बहुत दूर और
बहुत देर तक
मगर तुम्हें मेरे होने का
एहसास भी नहीं होता
मेरी हरकतों से
कोई स्पंदन
तुम में नहीं होता …।
मैं अपना नाम
तुम्हारी जुबान पर
लाने की चाहत में
घंटों तुम्हारीं
बातें सुनती हूँ
तुम्हारी बातों में
होते हैं बहुत सारे
अजनबियों के किस्से
मगर मेरा नाम नहीं होता
जब तुम मुझ से
पूछते हो –
मेरा वो कौन है
तब इन्तहा होती है
तुम्हारी बेरुखी की
और मेरे टूटते दिल को
सम्हालने में
मेरी अंतहीन असफल
कोशिशों की।
— मँजु शर्मा
वाह वाह ,बहुत खूब !!!!