गीत/नवगीत

गीत : सबकी ऐसी तैसी

एक हाथ में तीर एक में लालटेन विद्यमान
दोनों बेटे सेट किये पूरे दिल के अरमान
लिखे अपेक्षा पढ़े उपेक्षा सुनो बिहार के लोगो
मंत्री तुम्हरे अब तो बन गए अजब गजब विद्वान
कि सबकी ऐसी तैसी

मार कुटाई अपहरणों का फिर से होगा दौर
इसकी राग अलग होगी व उसकी हो कुछ और
फिर से जाना ठोकर खाने दुनिया भर में सारे
छोड़ छाड़ के मैया बाबा छोड़ के अपना ठौर
कि सबकी ऐसी तैसी

भाई चारा चरने वालों का ही आया शासन
गुंडे डाकू चोर मवाली से कांपे प्रशासन
जात पात से तय होगी सब कानूनी धारायें
लाज बचाना केशव अब तो आ गए हैं दु:शासन
कि सबकी ऐसी तैसी

— मनोज “मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

2 thoughts on “गीत : सबकी ऐसी तैसी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सिहरे सब हैं ….. देखे क्या क्या होता है

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा ,करारा विअंघ. मुझे तो गरीब लोगों को इन हुशिआर लोगों की जीत पर डांस करते हुए देख कर हंसी आती है कि यह लोग किस बात पर जश्न मना रहे होते हैं .

Comments are closed.