ग़ज़ल
बाज़ार मैं बैठे मगर बिकना नहीं सीखा
हालात के आगे कभी झुकना नहीं सीखा
तन्हाई मैं जब छू गई यादें मिरे दिल को
फिर आंसुओं ने आँख मैं रुकना नहीं सीखा
फिर आईने को बेवफा के रूबरू रक्खा
मैंने वफ़ा की लाश को ढकना नहीं सीखा
जब चल पड़े मंजिल की जानिब ये कदम मेरे
फिर आँधियों के सामने रुकना नहीं सीखा
— महावीर उत्तरांचली