राजनीति

उत्तर प्रदेश का बनता बिगड़ता राजनैतिक वातावरण

बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद व नीतिश कुमार के पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पीएम मोदी व भाजपा विरोधी दलों व नेताओं को आस बंधी थी कि अब इस प्रकार का प्रयोग पूरे भारत में दोहराकर पीएम मोदी के सभी सपनों को चकनाचूर कर दंेगे। लेकिन अभी यह फिलहाल संभव नहीं हो परा है कि उप्र में भाजपा विरोधी कोई महागठबंधन कोई निर्णायक आकार ग्रहण कर पायेगा। हालांकि लालू- नीतिश की जोड़ी व राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि अब भारतीय राजनीति में कुछ भी हो सकता है। चुनाव परिणामों के तत्काल बाद समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का एक बयान भी इस संदेह में आया भी लेकिन वह 24 घंटे भी नहीं टिक पाया। उत्तर प्रदेश में महागठबंधन की परिकल्पना को बहुजन समाजवादी पार्टी सिरे से खारिज कर चुकी हैं तथा वह पूरे आत्मविश्वास के साथ लबालब हैं और वह जोरदार दावा कर रही हैं कि इस बार प्रदेश में सत्ताविरोधी रूझान कापूरा लाभ उनको मिलने जा रहा है।

जबकि दूसरी ओर प्रदेश की समाजवादी पार्टी अपनी सरकार के विकास कार्यो के बलबूते मिशन- 2017 को फतह करने की तैयारी मंे जुट गयी है। पंचायत चुनावों की संपूर्ण गहमागहमी समाप्त होने के बाद ही संभावना व्यक्त की जा रही है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सरकार के विकास कार्यो का स्थलीय परिक्षण करने के लिए व्यापक दौरा करने वाले हैं वे वहीं पर विकास कार्यों की जांच करेंगे और दोषी अफसरों के खिलाफ तत्काल कार्यवाही भी करेंगे। दूसरी ओर प्रदेश सरकार युवाओं को अपनी ओर बनाये रखने के लिए भारी मात्रा मंें नौकरियों की एक बार फिर बयार लाने जा रही है। साथ ही प्रदेश सरकार अब अपने जातिगत वोटबैंक के समीकरणों को सुधारने के लिए एक के बाद एक अवकाशों की सूची बढ़ाती जा रही है। प्रदेश सरकार के समक्ष सबसे बढ़ी नकारात्मक छवि है कानून और व्यवस्था जिसमें महिला सुरक्षा एक बढ़ी समस्या बनकर उभरी है।

आज प्रदेशभर में नारी समाज अपने आप को सर्वाधिक असुरक्षित महसूस कर रहा है। युवतियों के साथ कहीं भी कभी भी छेड़छाड़ व बलात्कार की शर्मनाक वारदातें घटित हो रही हैं । अभी हाल ही में वाराणसी में एक रूसी महिला पर एसिड अटैक किया गया फिर कानपुर में एक नाबालिग लड़की केे साथ चलती कार मंे गैंगरेप की वारदात को अंजाम दिया गया। यह सब घटनायें ंतो एक उदाहरण मात्र हैं लेकिन आज वास्तव मंे प्रदेश में कानूल व्यवस्था पटरी से उतरी हुई है। पूरा पश्चिमी उप्र साम्प्रदायिक तनाव के साये में जी रहा है। स्वयं अखिलेश कैबिनेट में भी सब ठीक नहीं चल रहा है। अभी हाल ही मंे किये गये मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल के चलते प्रदेश सरकार के बाहुबली मंत्री राजाभैया नाराज चल रहे हैं खबर है कि वे कैबिनेट की बैठक से नदारद चल रह हैं। वहीं मंत्रिमंडल फेरबदल में मंत्री बनने की आस लगाये कुछ विधायक अब अपनी बगावती आवाज को उठाने लग गये हैं। जिसमें सर्वाधिक मुखर आवाज लखनऊ मध्य के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने उठायी है। रविदास मेेहरोत्रा ने प्रदेश सरकार के मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति पर अवैध खनन करवाने का आरोप लगाया है।

ज्ञातव्य है कि गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ लोकायुक्त में भी शिकायत की गयी थी लेकिन वहां पर उनके खिलाफ कुछ हो नहीं सका।गायत्री प्रसाद प्रजापति के कारनामें अक्सर स्थानीय मीडिया में छाये रहते हैं। आज की तारीख में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि जब प्रदेश के पचास जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया हो तथा गन्ना किसानों की समस्या का निराकरण न हो पा रहा हो उस समय समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह यादव का शाही जन्मदिवस सैफई में मनाया जा रहा है। पिछली बार प्रदेश सरकार के बयान बहादुर मंत्री आजम खां के रामपुर जिले में सपा मुखिया का जन्मदिवस बडे़ं धूमधाम से मनाया गया था। अबकी बार सपा मुखिया के जन्मदिन पर सबसे बड़ा अंतर यह था कि इस समारोह में मुलायम के करीबी आजम दूर थे तो पुराने मित्र अमर  सिंह उनको अपने हाथों से केक खिला रहे थे। इससे साफ संकेत जा रहा है कि अब अमर सिंह की वापसी सपा में लगभग तय होती जा रही हेै।

वर्तमान समय में सबसे बढ़ा संकट भारतीय जनता पार्टी के समक्ष उत्पन्न हो गया है। जहां बिहार चुनावों के बाद उसे नये सिरे अपनी रणनीति बनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उप्र भाजपा के प्रभारी ओम माथुर एक बार फिर अपनी रणनीति को बदलने को मजबूर हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को अभी यही तय करना है कि आगामी चुनावों मे विधानसभाचुनाव किस अध्यक्ष के नेतृत्व में लड़ा जायेगा। भाजपा के अंातरिक माहौल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डा.लक्ष्मीकांत बाजपेयी के खिलाफ एक माहौल बन रहा है। लोकसभा चुनावों के बाद एक के बाद एक उपचुनावों में भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। अभी पंचायत चुनावों में भी भाजपा की जबर्दस्त किरकिरी हुई हैं । यहां तक कि अनुशासनहीनता के कारण पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र मंे भी भाजपा को शर्मानाक स्थितियों का सामना करना पड़ा है। राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से इस समय भाजपा के पास 73 सांसद हैं जिसमें पीएम और गृहमंत्री सहित कई महतवपूर्ण मंत्रालय उप्र के ही पास हैं लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों भाजपा अत्यंत दयनीय स्थिति में है। कहा जा रहा है कि भाजपा के अधिकांश सांसद जनता व कार्यकर्ता से कट गये हैं और अहंकार में डूबे हैं। यही कारण है कि इस बार अध्यक्ष पद के चयन पर कई कांटे हैं।

भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी , शिवसेना बनकर आ रही हैं। इन दोनों ही दलों ने उप्र में आगामी चुनाव पूरी ताकत व तैयारी के साथ लड़ने का ऐलान कर दिया है। वहीं दूसरे छोटे दलों की क्या भूमिका हाने जा रही है यह अभी सामने नहीं आया है।वर्तमान में वस्तुस्थिति यह है कि फिलहाल उप्र में नीतिश कुमार आर लालू यादव का महागठबंधन बनाने का फार्मूला सिरे नहीं चढ़ने जा रहा है। उप्र की जनता परिवर्तन चाह रही है। लेकिन उसके समक्ष कोई दमदार चेहरा व दल नजर नहीं आ रहा। अभी सभी राजनैतिक दलों के पास एक वर्ष पांच महीने का समय है अपनी रणनीति को बनाने का ।

— मृत्युंजय दीक्षित