मैं फिर से इस जहाँ में आऊँगा!
मैं फिर से इस जहाँ में आऊँगा!
मैं प्यार के तेल से दीप जलाऊँगा,
अंधियारे रिश्तों को रोशन करुँगा,
बिछड़ गये थे जिंदगी के सफर में जो,
मैं फिर उजियाला कर उन्हें ढूंढ लाऊँगा!
मैं प्रीति के गीत सुनाऊँगा,
नीरस जीवन का संगीत सुनाऊँगा,
टूट गये थे साज़ मेरी गलती से जो!
आज फिर उनसे सुरीले तरन्नुम बजाऊँगा!
मैं शब्द-श्रृंगार पहनाऊँगा,
उन रिश्तों को फिर सजाऊँगा,
बिखर गये थे जो मेरे अहं के तूफान से,
मैं फिर से उन्हें इकठ्ठा कर लाऊँगा!
मैं जीत कर जंग जाऊँगा,
जो मिलेगा उसे बाँट के खाऊँगा,
जल गया था मेरे क्रोध की अग्नि में जो,
मैं फिर उसे अमृत का अमरत्व दे जाऊँगा!
मैं फिर से इस जहाँ में आऊँगा!
— मयूर जसवानी