ग़ज़ल
दोस्ती में ये कशमकश मुआमला गंभीर है
हम अब दाल कैसे खाएं मुआमला गंभीर है
वादे तो बहुत कर लिए हाथी पर बैठकर यूं
सफ़ेद दाढी में जो तिनका मुआमला गंभीर है
देश का सम्मान हमारे दिल में आज भी है
काली दाढ़ी में गुनाहगार मुआमला गंभीर है
मल्टीनॅशनल कंपनी का माल आएगा मगर
खाने को दाना न होगा अब मुआमला गंभीर है
जाति-धर्म के नाम न जाने हंगामा खड़ा हो गया
कैसा है ईमान शासन के नाम मुआमला गंभीर है
बिना सोचे किया था भरोसा हम चीख़कर कहते
कौन सुनता हमारी गुजराती मुआमला गंभीर है
– पंकज त्रिवेदी