राजनीति

नीतीश को ताज, लालू को राज (समापन किश्त)

४. नीतीश की छवि — अभीतक नीतीश कुमार की छवि एक साफ-सुथरे और ईमानदार प्रशासक की रही है। उनके द्वारा मनोनीत मुख्यमंत्री जीतन राम के बड़बोलेपन से बिहार का बुद्धिजीवी वर्ग प्रसन्न नहीं था। जीतन राम को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने की घटना को बिहार के बाहर नीतीश की सत्तालोलुपता के रूप में देखा गया, लेकिन बिहार की जनता ने इस घटना को इस रूप में नहीं लिया। जनता ने नीतीश की वापसी पर राहत की साँस ली। अपने शासन-काल में नीतीश ने मुस्लिम लड़कियों और कमजोर वर्ग की लड़कियों के लिए हाई स्कूल के बाद १५००० रुपए की अनिवार्य छात्रवृत्ति लगातार दिलवाई, सूबे की सभी लड़कियों को सायकिल और यूनिफार्म मुफ़्त में मुहैय्या कराई तथा वृद्धा्वस्था पेंशन नियमित रूप से बंटवाई। इसका श्रेय लेने का भाजपा के सुशील मोदी ने भी प्रयास किया, परन्तु मुख्यमंत्री होने के कारण लोगों ने इसका श्रेय नीतीश को ही दिया। विकास के नाम पर कुछ विशेष तो नहीं हुआ, परन्तु बड़े पैमाने पर सड़कों का कायाकल्प अवश्य हुआ। आज की तिथि में बिहार की सड़कें उत्तर प्रदेश की तुलना में कई गुना अच्छी हैं। इन सबका श्रेय नीतीश ने अपने योजनाबद्ध प्रचार के कारण स्वयं लेने में सफलता प्राप्त की। लालू के भ्रष्टाचार की कहानी नीतीश के कारण ज्यादा चर्चा में नहीं आ सकी।

५. दाल और प्याज – चुनाव में भाजपा की अलोकप्रियता के लिए रही-सही कसर दाल और प्याज ने पूरी कर दी। १५ साल पहले दिल्ली में प्याज ने भाजपा को खून के आँसू रुलाया था। उस समय भाजपा सत्ता से बेदखल क्या हुई, दिनानुदिन कमजोर होती चली गई और आज भी दिल्ली के भाजपाई मुख्यमंत्री की कुर्सी को हसरत से देखने के अलावे कुछ नहीं कर पा रहे। दाल और प्याज की महंगाई ने जन असंतोष की आग में घी का काम किया। हालांकि इस महंगाई के लिए राज्य सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं थी, लेकिन नीतीश और विशेष रूप से लालू ने बिहार की जनता से ठेठ देहाती में सीधा संवाद स्थापित करके केन्द्र सरकार को मुज़रिम बना दिया। आश्चर्य है कि जो दाल ८ नवंबर के पहले जिस खुदरा दुकान में २१० रुपए प्रति किलो की दर से बिक रही थी, उसी दुकान में ९ नवंबर को १६० रुपए प्रति किलो बिकी। मैंने खुद खरीदा। यह महंगाई प्रायोजित थी या स्वाभाविक – राम जाने। चुनाव के बाद पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकारों के तेवर की तरह प्याज का भाव भी शान्त हो गया। इसका भाव अचानक ८० से घटकर ३०-३५ रुपए पर आ गया।

य६. सरकारी तंत्र का सदुपयोग — चुनाव परिणाम अपनी मर्जी के अनुसार मैनेज करने में लालू सिद्धहस्त हैं। यह कला उन्होंने ज्योति बसु से सीखी थी। १५ सालों तक उन्होंने इसी के बल पर बिहार में एकछत्र राज किया। EVM आ जाने और राष्ट्रपति शासन में चुनाव होने के कारण १५ वर्षों के बाद बिहार में लालू की भयंकर पराजय हुई थी। इस बार लालू की सलाह पर सरकारी तंत्र का सत्ता के लिए अच्छा उपयोग किया गया। चुनाव की अधिसूचना के पहले बिहार के सभी ३१ जिलों में मन पसंद जिलाधिकारी, उपजिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों की तैनाती की गई। मतगणना में तैनात कई सरकारी अधिकारियों से मैंने बात की। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि मतगणना के समय कई EVM के कवर खुले और सील टूटी पाई गई। उन्होंने रिटर्निंग आफिसर (जिलाधिकारी) को दिखाया भी, परन्तु आर.ओ. ने वैसे EVM में पड़े मतों की भी गणना जारी रखने का आदेश दिया। ज्ञात हो कि सिवान जिले के जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी – दोनों ही यदुवंशी हैं। अधिकांश बूथों पर प्रिजाइडिंग आफिसर से प्राप्त मतों के विवरण और EVM के द्वारा गिने गए मतों में भिन्नता पाई गई। ऐसे में मतगणना रोक दी जाती है, परन्तु वरिष्ठ मतगणना पर्यवेक्षक द्वारा ध्यान आकर्षित करने के बावजूद भी जिलाधिकारी के निर्देश पर मतगणना जारी रही। चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक जिलाधिकारी द्वारा दी गई रात्रि-पार्टियों से अनुगृहित थे। प्रत्येक चरण की मतगणना के बाद यह तो बताया जा रहा था कि फलाँ प्रत्याशी आगे चल रहा है लेकिन विभिन्न प्रत्याशियों द्वारा प्राप्त मतों को बोर्ड पर प्रदर्शित नहीं किया जा रहा था। अब मुझे भी कुछ-कुछ समझ में आने लगा है कि ८ नवंबर को दिन के १०.१५ बजे दो तिहाई बहुमत की ओर अग्रसर भाजपा गठबंधन १०.२० पर अचानक पीछे क्यों हो गया। CNN और ETV को पहले ही मैनेज कर लिया गया था। प्रसिद्ध टीवी एंकर रवीश कुमार ने भी प्रसारण के दौरान ही १० मिनट के अंदर परिणामों में उलटफेर पर घोर आश्चर्य व्यक्त किया था। दिन के १०.२५ बजे महागठबंधन दो तिहाई बहुमत के पास था और भाजपा औंधे मुंह गिर चुकी थी। चुनाव आयोग ने चुनाव तो निष्पक्ष कराए पर मतगणना में निष्पक्षता बरकरार नहीं रख सका। EVM के खुले कवर और टूटी सीलें, चिप्स के हेरफेर की ओर संकेत तो करते ही हैं। कुछ भी हो, लालू अपना खोया साम्राज्य पाने में सफल तो हो ही गए। किसी ने सच ही कहा है – खुदा मेहरबान, तो गधा पहलवान। सेक्युलरिस्टों के २०% खुदा तो लालू के साथ हमेशा रहते हैं।

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.