नवगीत : तलाश है
उड़ जाने दो मुझको आसमाँ में
बह जाने दो पानी की धारा में
रूकना नहीं है मुझको जाना है
रोशनी में खुद को लाना है
तलाश है मुझे खुद की
ये आवाज है मेरे मन की
खामोश क्यों मेरी जुबां है
लफज नहीं है कैसी ये दासतां है
तनहाई मुझको है डस रही
आँखें मेरी ये कह रही
तलाश है मुझे खुद की
ये आवाज है मेरे मन की
काली काली रातों में
खुद को ढूँढूँ मैं यहाँ
मिलता नहीं है
मेरा यहीं कोई निशा
खाली खाली राहों में
कोई नहीं मेरा यहाँ
कोई वजह नही हैं
आँसुओं को पीने की
तलाश है मुझे खुद की
ये आवाज है मेरे मन की
— विकाश सक्सेना