कविता

पावन गंगा

पावन गंगा
ये हमारी माँ
भारत की शान है

सदियों से चली आ रही
सबकी गंदगी धोते
गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक
पर आज पावन गंगा
को
अपनी पाप धोते-धोते
इसे भी कर दिये गंदा
जिस गंगा की पानी में
वर्षों कीड़े न लगते
आज उसी गंगा की जल
पीने लायक न रह गया
पर गंगा पावन थी
आज भी ये पावन है
जरुरत है उस धारा की
जो सारी गंदगी मिटा दे
इस शुभ कार्य के लिए
मोदी जी चलाये अभियान
आओ हमसब भी इसमें
दें अपना अहम योगदान

– दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “पावन गंगा

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

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