बच्चा पैदा करने वाली मशीन
केरल के मशहूर सुन्नी मुस्लिम धर्मगुरु कांथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार ने कल दिनांक २८, नवंबर, २०१५ को कोझिकोड में मुस्लिम स्टूडेंट फ़ेडेरेशन के एक कैंप को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाएं कभी पुरुषों के बराबर नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे केवल बच्चों को पैदा करने के लिए बनी हैं। उन्होंने कहा कि लैंगिक समानता की अवधारणा गैर इस्लामिक है। आल इंडिया सुन्नी जमीयत उल उलेमा के प्रमुख मुसलियार ने कहा कि महिलायें मानसिक तौर पर मज़बूत नहीं होती हैं और दुनिया को नियंत्रित करने की ताकत सिर्फ मर्दों में है। लैंगिक समानता कभी हकीकत नहीं बन सकता। यह इस्लाम और मानवता के खिलाफ होने के साथ ही बौद्धिक रूप से भी गलत है।
इसके उलट सनातन धर्म की अवधारणा है कि “यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।” जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है। अगर ऐसा बयान किसी हिन्दू धर्म गुरु ने दिया होता तो कल्पना कीजिए हिन्दुस्तान के न्यूज चैनल और धर्मनिरपेक्ष क्या कर रहे होते? टीवी पर कितने डिबेट चल रहे होते, कितने फिल्म सितारे भारत छोड़ने का बयान दे रहे होते और कितने प्रगतिशील गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाने के लिए सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे होते? यह गंगा-जमुनी कौन सी तहज़ीब है, मेरी समझ में आज तक नहीं आया। मेरी जो छोटी समझ है उसके अनुसार गंगा की पहचान देवाधिदेव महादेव से है और जमुना की पहचान योगीराज श्रीकृष्ण से है। भारत की पूरी संस्कृति ही गंगा और जमुना के किनारे विकसित हुई है और इस संस्कृति ने औरत को कभी हीन नहीं माना। गार्गी ने वेद की ऋचाएं रची, दुर्गा ने असुरों का संहार किया, सरस्वती ने विद्या दी और लक्ष्मी ने विश्व को धन-संपदा। आज के युग में भी अहिल्या बाई ने आदर्श राज्य-व्यवस्था की नींव रखी, तो लक्ष्मी बाई ने पराक्रम और शौर्य का नया इतिहास रचा। नारी का दर्ज़ा पुरुषों के बराबर नहीं, उनसे कहीं ऊँचा है।