कुछ मुक्तक
प्यार के मीठे बोल जरा बोल दो
मेरे कानों में अमृत जरा घोल दो
जिन्दगी का है मेरे ठिकाना नहीं
बंद होठों को अपने जरा खोललव को खोलो जरा मुस्कुराओ जरा
मेरी ग़ज़लों को तुम गुनगुनाओ जरा
मस्त आंखों का छलका दो मदिरा प्रिये
पास आओ जरा पास आओ जरायूं न रुठो प्रिये कुछ कहो कुछ सुनो
मेरी बातों को मन में जरा तुम गुनो
दिल मेरा है खिलौना नहीं बच्चों का
चाहे जब तोड दो चाहे जब तुम बुनो— अरुण निषाद