मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

 

प्यार के मीठे बोल जरा बोल दो
मेरे कानों में अमृत जरा घोल दो
जिन्दगी का है मेरे ठिकाना नहीं
बंद होठों को अपने जरा खोल

लव को खोलो जरा मुस्कुराओ जरा
मेरी ग़ज़लों को तुम गुनगुनाओ जरा
मस्त आंखों का छलका दो मदिरा प्रिये
पास आओ जरा पास आओ जरा

यूं न रुठो प्रिये कुछ कहो कुछ सुनो
मेरी बातों को मन में जरा तुम गुनो
दिल मेरा है खिलौना नहीं बच्चों का
चाहे जब तोड दो चाहे जब तुम बुनो

अरुण निषाद

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032