बाल कविता : अपनी माटी
अपनी माटी अपनी माटी
हमें है अपनी जान से प्यारी
इसके लिये कुछ भी कर जायेंगे
अपनी जान भी दे जायेंगे
हम चुप है तो डरपोक न समझो
वीर पुरुष हम कहलाते हैं
ज्वालामुखी जब फटता हमारा
दुश्मन को खून से नहलाते हैं
जान छिड़कते है इस माटी पर
यह सुनाती है वीरो की गाथा
लहुलुहान जब ये हो गयी थी
वो पल याद दिलाती ये माता
अपनी माटी अपनी माटी
हमें है अपनी जान से प्यारी।