मुक्तक
कभी न झुकनेवाले करो वक्त का एहसास
दर्प दिखाने वाले का हो हो जाता विनाश
वक्त की आँधी में बड़े वृक्ष उजड़ जाते हैं
वक्त को समझनेवाली नहीं उजड़ती घास
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खुशियाँ सबको बाँटूं गम ले लूं उधार
तमस मिटाने के लिए खुद जलूं सौ बार
देश के काम आ जाये गर जिन्दगी
मेरे जीवन का मुझपर होगा बड़ा उपकार
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प्यार का हो सम्पति मुझे ज्ञान हो मेरा साथी
दोस्ती हो ऐसे जैसे दीया और बाती
इंसानियत का बीज बोऊँ घर-आँगन में
कुछ ऐसा कर दिखाऊँ गर्व करे ये माटी
— दीपिका कुमारी दीप्ति