कविता : बात करुँगी, बात करुँगी
हर पल वेदना सहती रहती थी,
अब न रोकूंगी खुद को आली
बात करुँगी , बात करुँगी ,
उनसे ह्रदय की बात कहूँगी
सज संवर प्रिय का संताप हरूँगी
बात करुँगी , बात करुँगी
पुष्प चुनूगीं,नूतन वेश धरूंगीं
खुद को भी अर्पण करूँगीं
बात करुँगी , बात करुँगी
मैं वागदत्ता तेरी
प्रत्युत्पन्न तेरे चरणों में गात धरूंगी
बात करुँगी , बात करुँगी ……………
— नीरज वर्मा “नीर”
सुन्दर रचना। बधाई हो।
सुन्दर रचना। बधाई हो।