ग़ज़ल
जात-मज़हब के सभी पर्दे हटाकर देखो
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई को बराबर देखो
लाख तीरथ करो,या पूज के पत्थर देखो
न मिलेगा रब, अगर दिल के न भीतर देखो
रंग लाती है दुआ क्या,ये पता तुम को चले,
कभी आशीष बुज़ुर्गों के तो लेकर देखो
आग बदले की धधक कर ये बताती है मुझे,
सूख जाता है यूँ ही नेह का सागर देखो
बात जब हद से ज़ियादा बढ़े,दिल मेरा करे,
आप घर देखूँ,कहूँ बीवी से दफ़्तर देखो
मेह्रबाँ हो गया क्या आसमाँ उसपे थोडा,
उसके पड़ते नहीं अब पाँव ज़मीं पर देखो
मेरे अश्कों ने भी क्या खूब सितम ढाया है,
शर्म से लाल हुआ जाता समन्दर देखो
हो के बेख़ौफ़ उड़ो दूर गगन में ‘जय’ पर,
हों ज़मीं पर ही तेरे पाँव,ये अक्सर देखो