कविता : बीत गयी सुहानी बेला
बीत गयी सुहानी बेला
क्या लिखूं क्या गाऊं
छुट गया हर किनारा मुझसे
इस जिदगी का,
अब ठौर कहाँ मै पाऊँ
न साथी न राह न मंजिल
किस बात पे मै अब इतराऊँ
बीत गयी सुहानी बेला
क्या लिखूं क्या गाऊं
फूल बगीचे कलियाँ
हर दामन मे
मै निर्झर कांटे पाऊँ
फ़ैल रही है शीतल चादनी
इस धरा पर
मै सूर्य किरण सा तपता जाऊँ
बीत गयी सुहानी बेला
क्या लिखूं क्या गाऊं ……
— नीरज वर्मा “नीर”