गीत
तू जब-जब भी मुस्काये मन बाग-बाग होता है.
तन-वंशी में मधुवंती सा राग-राग होता है.
कैसे चित्रों की रेखा
के भीतर रंग भरें हम.
मन करता है हर सीमा
तोड़ें,जब प्यार करें हम.
तन में पावस गाता है मन आग-आग होता है.
तू जब-जब भी मुस्काये मन बाग-बाग होता है.
तेरी बातों से मेरी
हर इक रचना रच जाये.
मैं गीत-गजल जब गाऊँ
जग भी मेरे सँग गाये.
तन में मधुमास जगे फिर मन फाग-फाग होता है.
तू जब-जब भी मुस्काये मन बाग-बाग होता है.
प्रेम शब्द का मुझको अब
सच्चा उपयोग मिला है.
पुण्य किये कुछ होंगे जो
तुमसे संयोग मिला है,
तन संगम मन वृंदावन जीवन प्रयाग होता है.
तू जब-जब भी मुस्काये मन बाग-बाग होता है.
— अर्चना पांडा